कविता
चुप रहकर भले ही तुमन सत्ता से यारी रखते हो,
लेकिन अपने दिल से पूछो, क्या खुद्दारी रखते हो।
जफ़ा ये सहकर तुमने शायद कोई खजाना पाया है,
शायद इन जंजीरो में तुम्हें सुख चैन नज़र आया है,
लेकिन इन सोने चांदी के पिंजरों से बाहर आकर देखो,
खुले हुए अम्बर के तले अपने अपने पर फैलाकर देखो,
परवाज तुम्हारी भारी है क्यों लाचारी रखते हो,
खुद के तुम ही ख़ुदा हो यारो, तुम खुद्दारी रखते हो।