कविता

कविता

चुप रहकर भले ही तुमन सत्ता से यारी रखते हो,
लेकिन अपने दिल से पूछो, क्या खुद्दारी रखते हो।

जफ़ा ये सहकर तुमने शायद कोई खजाना पाया है,
शायद इन जंजीरो में तुम्हें सुख चैन नज़र आया है,
लेकिन इन सोने चांदी के पिंजरों से बाहर आकर देखो,
खुले हुए अम्बर के तले अपने अपने पर फैलाकर देखो,

परवाज तुम्हारी भारी है क्यों लाचारी रखते हो,
खुद के तुम ही ख़ुदा हो यारो, तुम खुद्दारी रखते हो।

विनोद दवे

नाम = विनोदकुमारदवे परिचय = एक कविता संग्रह 'अच्छे दिनों के इंतज़ार में' सृजनलोक प्रकाशन से प्रकाशित। अध्यापन के क्षेत्र में कार्यरत। विनोद कुमार दवे 206 बड़ी ब्रह्मपुरी मुकाम पोस्ट=भाटून्द तहसील =बाली जिला= पाली राजस्थान 306707 मोबाइल=9166280718 ईमेल = [email protected]