लघुकथा

धोखा

मानसी ने देखा कि रीना अभी तक वहीं बैठी है.
“क्या बात है तैयार क्यों नहीं हो रही. तुम्हें अंकल के पास छोड़ कर मुझे मीटिंग में जाना है.”
मानसी की माँ उसके साथ ही रहती थीं. अतः वह रीना को लेकर बेफिक्र रहती थी. किंतु एक महीने से वह उसके भाई के घर रह रही थीं. उसकी गर्भवती भाभी की देखभाल के लिए. इसलिए उसने कुछ दिनों से घर पर रह कर काम करना शुरू कर दिया था. लेकिन जब ऑफिस में कोई जरूरी मीटिंग होती थी तो उसे जाना पड़ता था. ऐसे में वह रीना को अपने दूर के अंकल के पास छोड़ आती थी. रीना अभी भी वैसे ही बैठी थी. मानसी ने डांटा “सुनती क्यों नहीं मुझे देर हो रही है.”
“मैं वहाँ नहीं जाऊँगी. अंकल गंदे हैं.” कह कर रीना रोने लगी. रोते हुए वह भय से कांप रही थी.
बात जब मानसी की समझ में आई तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई. अपने काम की व्यस्तता में वह
समझ ही नहीं पाई कि क्यों उसकी बच्ची इतनी चुप रहती है. क्यों उसके खिलौने उपेक्षित पड़े हैं.

*आशीष कुमार त्रिवेदी

नाम :- आशीष कुमार त्रिवेदी पता :- C-2072 Indira nagar Lucknow -226016 मैं कहानी, लघु कथा, लेख लिखता हूँ. मेरी एक कहानी म. प्र, से प्रकाशित सत्य की मशाल पत्रिका में छपी है