इस शराफत में इस सदाकत में
इस शराफत में इस सदाकत में
हम लुटे बारहा मुहब्बत में
हम रहे दिल्ली या के सूरत में
साफ़गोई रहेगी सीरत में
सिर्फ वादों का खेल जारी है
काम होता नहीं सियासत में
क़त्ल कर दे या बख्श दे हमको
आ गए आपकी रियासत में
पत्थरों को पिघलते देखा है
हमने यारों बहुत इबादत में
उन दियों को बुझा सके न कोई
जो हवाओं की हो हिफाज़त में
कैसे अपना उन्हें कहे ‘माही’
काम आये न जो मुसीबत में
माही
जयपुर / 8511037804