नभाटा ब्लॉग पर मेरे दो वर्ष – 21
मैं कुछ सेकुलर कहे जाने वाले दलों की सरकारों की मुस्लिमपरस्त नीतियों पर व्यंग्य करता रहता था. ऐसा ही एक व्यंग्य मैंने ‘राष्ट्रीय एकता के शहीद’ शीर्षक से अपने ब्लॉग पर डाला. इसमें तीन काल्पनिक (लेकिन सच्चाई के बहुत निकट) दृश्यों के आधार पर इन तथाकथित सेकुलर सरकारों की निर्लज्ज साम्प्रदायिकता (जिसको मैं शर्मनिरपेक्षता कहता हूँ) को प्रकट किया गया है.
जैसी कि मुझे आशा थी, इस व्यंग्य पर बहुत टिप्पणियाँ आयीं, जिनमें मुसलमानों की भी बड़ी संख्या थी. कई मुस्लमान सज्जनों ने तो मुझे सीधे सीधे गालियाँ लिख भेजीं, जिनको मैंने ब्लॉग पर नहीं जाने दिया. कई ने मेरी बात को गलत ठहराया और कई ने आंशिक सही बताया. ये सभी टिप्पणियाँ और उन पर मेरे उत्तर पढने योग्य हैं. लिंक नीचे दे रहा हूँ.
राष्ट्रीय एकता के शहीद
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/Khattha-Meetha/entry/%E0%A4%B9-%E0%A4%B8-%E0%A4%AF-%E0%A4%B5-%E0%A4%AF-%E0%A4%97-%E0%A4%AF-%E0%A4%B0-%E0%A4%B7-%E0%A4%9F-%E0%A4%B0-%E0%A4%AF-%E0%A4%8F%E0%A4%95%E0%A4%A4-%E0%A4%95-%E0%A4%B6%E0%A4%B9-%E0%A4%A6
मेरा ब्लॉग लेखन इसी तरह चल रहा था और उसके पाठकों की संख्या बढती जा रही थी. मुझे अपने ब्लॉग स्वयं लाइव करने का अधिकार फिर वापस मिल गया था, इसलिए मैं हर तीन दिन में अपना एक न एक लेख लाइव कर देता था. बहुत से पाठक तो मेरे लेखों की प्रतीक्षा ही करते रहते थे. यदि किसी दिन किसी कारणवश लेख लाइव नहीं कर पाता था तो वे याद दिलाने लगते थे.
— विजय कुमार सिंघल
माघ कृ. प्रतिपदा, सं. 2073 वि. (13 जनवरी 2017)