कविता

स्त्री/वामा

स्त्री है तो सृजन है
सृजन है तो संसार है
स्त्री से ही संसार है
संसार है तो व्याप्त श्री है
स्त्री है तो श्री है
फिर भी लेकिन एकाकीपन
चुभन से बुरी लगती जिन्दगी
तलाश कंधे चार
नारकीय सहती जिन्दगी
मिलते क्या जो दर्द समझते
बेदर्द न होते चुनिंदा
सुनंदा को स्वनंदा करती जिन्दगी
तुला-तंतु में वामा
यादों-वादों गमों उलझी
रहमत-ए-खुदा को जुदा करती जिन्दगी

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ