श्रवण कुमार कल और आज
इस चित्र को मैने दो भागों में विभाजित किया है, अपनी रचना के माध्यम से यह जानने की कोशिश की है कि जब यह पुनीत कार्य किया गया तब लोग क्या सोचते थे, आज यही दृश्य सामने आए तो लोग क्या कहेंगे –
साथ ही साथ श्रवण के मन में क्या भाव होंगे लिखने की कोशिश की है।
पहले लोगों के द्वारा किया गया विचार. – – – –
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बालक सुकुमार दण्ड तराजू की थाम,
पलड़े में मात-पिता को बिठाय जात धाम।
साहस अदम्य इसके, बच के चलत घाम,
तीनों हर्षित चले, जपते प्रभू का नाम।
विधि के विधान को करके श्रवण प्रणाम,
मातु-पितु तुला बिठा, चला देखो निष्काम।।
आज के लोग क्या कहेंगे. –
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बालक पर अत्याचार, करती है सरकार,
गरीबों की आह भला कैसे खाली जायेगी।
नेता मैं विपक्ष का, करता हूँ जन ऐलान,
मेरी सरकार बने दशा मैं सुधारुँगा।
मोटर मिलेगी, सब यात्रा को जाएगें,
चारो धाम करवाके भोज करवाऊँगा।
तोड़ दो निकम्मी इस सरकार के घमंड को,
मै ही मैं हूँ दूजा नहीं है कोई, मैं भव से पार करवाऊँगा।
देना वोट मुझको, किसी के लोभ में न फंसो,
कोई नहीं आपका, बस मैं ही काम आऊँगा।।
इन दोनों परिस्थिति में श्रवण सिर्फ और सिर्फ एक ही बात सोचता है – – –
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प्रभु लाता मैं द्वार तिहारे, अपने माता-पिता को,
तेरे दर्शन को नैन नहीं, यह दर्द दिखता आपको।
जब जन्म दुबारा देना, नैनो के साथ ही देना,
दुःख झेले, बहुत ही नाम जपे, हर लेना तुम श्राप को।।
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।।प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदी कला, सुलतानपुर
7537807761