ग़ज़ल
नंदन प्यारा था दुलारा था, सहारा न हुआ
मेरा खुद का ही जलाया दिया अपना न हुआ |
रौशनी फ़ैल गयी चारो तरफ लेकिन फिर
घर अँधेरा था अँधेरा है उजाला न हुआ |
देखते रह गए बेसुध नसे में मदिरा बिना
चाह कर भी उन्हें फ़रियाद सुनाना न हुआ |
दिल नहीं तुझको दिखा सकता जलाया तू ने
ख़ाक में मिल गया वो छार किसी का न हुआ |
निकले थे वज्म से बेआबरू होकर कभी वो
बेरुखी तेरी वजह थी कि दिवाना न हुआ |
सिर्फ मैं ही नहीं, हर एक दिवाना जो बना
दर्द तुमने दिया उसको तो भुलाना न हुआ |
याद करते थे सभी तुझको, दुलारी थी तू
दिल का अरमान हमारा कभी पूरा न हुआ |
कालीपद ‘प्रसाद’