धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

“धर्मशास्त्र और मानव”

जय श्रीकृष्ण:

“धर्मशास्त्र और मानव”                   21-01-2017

मनुस्मृति हिन्दू धर्म का सबसे महत्वपूर्ण एवं प्राचीन धर्मशास्त्र (स्मृति) है.इसे मानव-धर्म-शास्त्र, मनुसंहिता आदि नामों से भी जाना जाता है. यह उपदेश के रूप में है जो मनु द्वारा ऋषियों को दिया गया.इसके बाद के धर्मग्रन्थकारों ने मनुस्मृति को एक सन्दर्भ के रूप में स्वीकारते हुए इसका अनुसरण किया है हिन्दू मान्यता के अनुसार मनुस्मृति ब्रह्मा की वाणी है. मनुस्मृति वह धर्मशास्त्र है जिसकी मान्यता जगविख्यात है. अतः धर्मशास्त्र के रूप में मनुस्मृति को विश्व की अमूल्य निधि माना जाता है. भारत में वेदों के उपरान्त सर्वाधिक मान्यता और प्रचलन ‘मनुस्मृति’ का ही है. इसमें चारों वर्णों, चारों आश्रमों, सोलह संस्कारों तथा सृष्टि उत्पत्ति के अतिरिक्त राज्य की व्यवस्था, राजा के कर्तव्य, भांति-भांति के विवादों, सेना का प्रबन्ध आदि उन सभी विषयों पर परामर्श दिया गया है जो कि मानव मात्र के जीवन में घटित होने सम्भव है यह सब धर्म-व्यवस्था वेद पर आधारित है .मनु आदिपुरुष थे और उनका यह शास्त्र आदिःशास्त्र है. मानव का सबसे बड़ा धर्म अपनी चेतना को समय, स्थान और कर्म की सीमाओं से परे ले जाकर स्वतंत्र करना है. यह आस्था आधारित विश्वास नहीं है बल्कि यह योग और ध्यान की सहायता से अध्यात्म का अनुभव है. हमारे विचारों और कार्यों का परिणाम स्वाभाविक रूप से उनमें निहित गुणों पर आधारित होता है, बिल्कुल वैसा जैसे प्राकृतिक शक्तियों में होता है .उदाहरण के लिए क्रोधित होने का परिणाम हिंसक और विनाशकारी हो सकता है.कर्म का कोई दण्ड नहीं होता बल्कि उन बलों का स्वाभाविक परिणाम होता है जिन्हें हम खुद पैदा करते हैं .कर्म के नियम को समझने से हम अपने जीवन के प्रति उत्तरदायी और अपने कर्मों के लिए ज्यादा सचेत हो जाते हैं.धर्म आस्था और विश्वास पर निर्भर नहीं करता, बल्कि प्रत्यक्ष बोध और सही-गलत देख पाने, या विवेक पर निर्भर करता है.ऐसा गहन विवेक केवल आस्था, विश्वास और मन की कल्पनाओं को सत्य के रूप में स्वीकार नहीं कर सकता. इसके लिए अपने मस्तिष्क और अपने अहम् से ही प्रश्न करने होते हैं, समस्त माया जाल को भेदना होता है. धर्म आध्यात्मिक स्तर तक जाता है, जिस स्तर पर इसकी जड़ें कर्म के नियम से जुडी हैं, जो कि हमारे कार्य और उसके परिणामों के बीच का सम्बन्ध है . कर्म का नियम ईश्वर की आज्ञा पर निर्भर नहीं करता बल्कि ये प्रकृति के नियम और मन कैसे काम करता है, उसको दर्शाता है.

प्रतिभा देशमुख

श्रीमती प्रतिभा देशमुख W / O स्वर्गीय डॉ. पी. आर. देशमुख . (वैज्ञानिक सीरी पिलानी ,राजस्थान.) जन्म दिनांक : 12-07-1953 पेंशनर हूँ. दो बेटे दो बहुए तथा पोती है . अध्यात्म , ज्योतिष तथा वास्तु परामर्श का कार्य घर से ही करती हूँ . वडोदरा गुज. मे स्थायी निवास है .