आज़ादी
इस बड़े से मैदान का उपयोग धरना प्रदर्शन के लिए होता था. इसके एक कोने में एक शहीद सैनिक की विधवा अनशन पर बैठी थी. मुआवजे में मिली ज़मीन पर गुंडों ने कब्ज़ा कर लिया था और कोई सुनने वाला नही था. दूसरी तरफ कुछ सरकारी शिक्षक अपने वेतन की मांग को लेकर धरने पर बैठे थे. कहीं छात्रों का शोर था तो कहीं बूढ़े माता पिता अपनी उस बच्ची के लिए इंसाफ मांग रहे थे जिसकी अस्मत लूट कर मार दिया गया था.
मैदान के एक कोने में उस क्रातिकारी की प्रतिमा लगी थी. जिसने एक समतापूरक सुखी देश के लिए अपने प्राण गंवाए थे.
अपने समाचार पत्र के लिए रिपोर्टिंग करने गया मैं यह सब देख रहा था. उस प्रतिमा पर मेरी नज़र पड़ी तो मैं सोंचने लगा कि यदि यह प्रतिमा जीवित हो जाए तो देश में फैले इस अनाचार को देख कर उसे कितना धक्का लगेगा.