आश्रयहीन
रात में अचानक मेरी आँखें खुल गईं I घर के बाहर रोने की आवाज सुनाई दे रही थी I घर से बाहर निकलकर मैंने देखा कि जर्जर अवस्था में एक बूढ़ी बिलख-बिलखकर रो रही है I उनकी आँखोँ से लगातार अश्रुधारा प्रवाहित हो रही है I बीच सड़क पर आश्रयहीन बेसहारा I मैंने उन्हें सांत्वना दी और पूछा “आप कौन हैं और किसलिए रो रही हैं ?” मेरी बातें सुनकर वे और जोर-जोर से रोने लगीं I थोड़ी देर के बाद अपने दर्द को समेटते हुए उस बुजुर्ग महिला ने कहा – “मैं सच्चाई हूँ , अपने रहने के लिए आश्रय की तलाश कर रही हूँ I मै बेघर और लावारिस हो गई हूँ I कोई भी व्यक्ति मुझे आश्रय देने के लिए तैयार नहीं है I मुझे सभी आउटडेटेड समझते हैं I मैं खूँटी पर टँगी कमीज जैसी हो गई हूँ I नगर का कोना- कोना मैंने छान मारा पर रहने के लिए मुझे एक इंच भी जगह नहीं मिली I इसीलिए मैं सड़क पर लावारिस पड़ी हूँ I क्या आप मुझे आश्रय देंगे ? “
अचानक सवाल सुनकर मेरा माथा चक्कर खाने लगा I मैं गहरी सोच में पड़ गया I मैंने अपने दिल को कठोर कर जवाब दिया –“ नहीं माताजी, यदि मैंने आपको आश्रय दिया तो मेरा परिवार सड़क पर आ जाएगा I“