मिटाने अँधेरा चला दीप जैसे
मिटाने अँधेरा चला दीप जैसे, निशा खिलखिलाती बताते रहे हम ।
कहाँ का अँधेरा मिटाने चला तू, सदा रोशनी दिल लगाते रहे हम ।
कभी चाँद तारे निशा को सँवारे, दिले राज खुद से बताने लगे हैं।
मिले रातरानी गुलाबी दिलों की, यही प्यास मन से छिपाते रहे हम ।
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढी