मुक्तक
उबलते जज्बात पर चुप्पी ख़ामोशी नहीं होती
गमों के जड़ता से सराबोर मदहोशी नहीं होती
तन के दुःख प्रारब्ध मान मकड़जाल में उलझा
खुन्नस में बयां चिंता-ए-हुनर सरगोशी नहीं होती
उबलते जज्बात पर चुप्पी ख़ामोशी नहीं होती
गमों के जड़ता से सराबोर मदहोशी नहीं होती
तन के दुःख प्रारब्ध मान मकड़जाल में उलझा
खुन्नस में बयां चिंता-ए-हुनर सरगोशी नहीं होती