मुक्तक : अगर दो पंख बेटी को
अगर दो पंख बेटी को छुएगी आसमां इक दिन
कहेगा ये जहां सारा इसी की दासतां इक दिन
भरेगी कल्पना जैसी उडानें देखना ये भी
करेगा नाज इस पर देखना हिन्दोस्तां इक दिन
अमन का है चमन इसमें नही अंगार तुम भरना
गुलों से महके दामन में अजी मत ख़ार तुम भरना
दिलों में प्यार का अहसास हो विश्वास हो कायम
गुजारिश है नही नफ़रत दिलों में यार तुम भरना
करोगे मान कर उनका तुम्हें सम्मान देंगे वो
करोगे गर जरा परवाह तुम पर जान देंगे वो
बचाकर तुम बुजुर्गों की अगर पहचान रख लोगे
मेरा दावा है की तुमको नयी पहचान देंगे वो
लहू की बूँद भी अंतिम बहाकर देश की खातिर
लडे जो दाँव पर जीवन लगा कर देश की खातिर
करेगा याद सदियों तक वतन उन नौजवानों को
गये जो भेंट जीवन की चढाकर देश की खातिर
- सतीश बंसल
०३.०२.२०१७