कविता : नवजीवन
नवजीवन
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आशंकित सी मैं…
थी व्याकुल
दर्द- वेदना से आकुल
मिला चैन
थमा सैलाब !
फिर…
नवजीवन की गूंजी आवाज़ !
अजब अनुभूति
नया अहसास
जीवन की हुई पूरी
हर – इक आस !
अंजाने…
पर पहचाने लगे अंग
नौ माह रहे, जो मेरे संग !
गोद आई
मेरी परछाई,
खुशी से आँख
मेरी भर आयी !
अंजानी पर…
लगी पहचानी छूअन
हुआ दूर, सब सूनापन !
बन बेटी
“लक्ष्मी” आई मेरे घर
पावन किया उसने, मेरा दर !
उडे़लूँगी उस पर
अपना प्यार
माँ कहलाने का दिया जिसने…
प्रथम अधिकार ! !
अंजु गुप्ता