“पढ़ लेते हैं सारी भाषा”
आशा और निराशा की जो,
पढ़ लेते हैं सारी भाषा।
दो नयनों में ही होती हैं,
सारी दुनिया की परिभाषा।।
दुख के बादल आते ही ये,
खारे जल को हैं बरसाते।
सुख का जब अनुभव होता है,
तब ये फूले नहीं समाते।
सरल बहुत हैं-चंचल भी हैं,
इनके भीतर भरी पिपासा।
दो नयनों में ही होती हैं,
सारी दुनिया की परिभाषा।।
कुछ में होती है खुद्दारी,
कुछ में होती है मक्कारी।
कुछ ऐसी भी आँखें होती,
जिनमें होती है गद्दारी।
ऐसी बे-ग़ैरत आँखों से,
मन में होती बहुत हताशा।
दो नयनों में ही होती हैं,
सारी दुनिया की परिभाषा।।
दुनिया भर की सरिताओं का,
इसमें आकर पानी ठहरा।
लहर-लहरकर लहरें उठतीं,
ये भावों का सागर गहरा।
बिन आँखों के जग सूना है,
ये जीवन की हैं अभिलाषा।
दो नयनों में ही होती हैं,
सारी दुनिया की परिभाषा।।
—
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)