धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

राम केवल एक चुनावी मुद्दा नही हमारे आराध्य है

लेखक:-पंकज प्रखर

राम केवल चुनावी मुद्दा नही बल्कि हमारे आराध्य होने के साथ-साथ हमारे गौरव का प्रतीक है। ये देश जो राम के आदर्शों का साक्षी रहा है ये अयोध्या जहां राम ने अपने जीवन आदर्शों के लिए न केवल कष्ट सहे बल्कि मनुष्यत्व के श्रेष्ठ गुणों को उसके चरम तक पहुँचाया वो राम आज केवल एक चुनावी मुद्दा है जिसे नेता अपनी–अपनी इच्छानुसार तोडते-मरोड़ते, घुमाते-फिराते हुए अपने मतलब सिद्ध करने में लगे हुए है। राम की मर्यादाओं और आदर्शों का दम भरने वाले सारे नेता सिर्फ ये सोच रहे है कैसे राम की कसम खा-खाकर राम मंदिर का लोभ दिखाकर लोगों को बरगलाया जाए और राम को मुद्दा बनाकर कैसे अपना–अपना उल्लू सीधा किया जाए। राम मंदिर निर्माण  के मूल प्रश्न को छोड़ कर लोगों को राम के म्युसियम से बहलाने की चेष्टा की जा रही है। हमारे रावण रुपी नेता राम की अनुपस्थिति का लाभ उठाकर लोगों की श्रद्धा रुपी सीता का हरण करने में लगे हुए है। लेकिन ये लोग भूल गये है की सीता का हरण तो रावण ने कर लिया था लेकिन कभी उसका वरण नही कर पाया था इसी प्रकार ये नेता कितना भी राम के नाम पर चीख लें नारे बाज़ी कर ले भारत का हिन्दू तब तक संतुष्ट नही होगा जब तक की राम मंदिर का निर्माण शुरू नही हो जाता।

 भारत का एक बढ़ा कवि जब भी उसे अवसर मिलता है दो लाईन कहता है की “राम लला है टाट में, और पट्ठे सारे ठाट मे” वर्तमान समय के राजनीतिक दल ये पंक्तियाँ चरितार्थ करते नज़र आ रहे है सरकार अन्य समुदायों के लिए कितनी भी तुष्टिकरं की राजनीति करले लेकिन हिन्दू वोट के आभाव में सरकार बन ही नही सकती। कहा जाता था की जब कोर्ट का फैसला आएगा तब राम मंदिर का निर्माण होगा कोर्ट का फैसला आये एक अरसा हो गया लेकिन मंदिर निर्माण की बात अभी तक खटाई में है ये ही फैसला अगर मुस्लिम समुदाय के पक्ष में आता तो तथाकथित सेक्युलर मुह धोकर समर्थन में आ जाते हमारे देश के साधू संत जब भी इस मुद्दे को उठाने या लोगों को जगाने के लिए प्रयत्न करते है तो उनका विरोध होता है चैनलों पर बड़ी बहस होती है और जब ये मुद्दा राजनीतिज्ञों की कुर्सियां हिलाने की तैयारी में होता है तो हिन्दू संतों पर आक्षेप लगाकर जनमानस को दूसरी दिशा की और मोड़ दिया जाता है। कब तक हिन्दू धर्म ये अन्याय सहन करेगा।

गीता में कृष्ण कहते है की यदि ईश्वर को देखना हो तो प्रात: ब्राह्मण का मुख देखा जाना चाहिए अर्थात ब्राह्मण धरती पर ईश्वर का प्रतिनिधित्व करता है, अन्य जातियां भी सम्मानीय है उन्हें भी भगवान् ने गीता में उनकी योग्यता के अनुसार परिभाषित किया है। लेकिन बढे दुःख का विषय है जिन लोगों पर भरोसा करके उन्हें देश की सबसे बड़ी कुर्सी पर बैठाया उन्होंने भी हमारे साथ न्याय नही किया हम धोखे खाये हुए प्राणी है तब तक किसी भी सरकार पर विश्वास नही कर सकते जब तक की वो व्यक्ति या सरकार राम मंदिर का निर्माण शुरू नही करवा दे। क्योंकि इस बार तो इस मुद्दे को रखा ही नही गया है सिर्फ म्युसियम की लोली पॉप पकड़ा दी है। ऐसा क्यों जब कोर्ट द्वारा ने ये मान लिया गया है की वहां बाबरी नही बल्कि राम मंदिर था तो उसका निर्माण शूरू क्यों नही हो रहा है? अब किस विवाद का इंतज़ार कर रही है सरकार।

सरकार इस बात को निश्चित रूप से मान ले की ये देश उन 80 प्रतिशत हिन्दुओं का है जिनके आदर्श श्री राम है जब तक ब्राह्मणों में सहनशक्ति है तब तक ही राम मंदिर नही बन रहा है जिस दिन इस देश के हिन्दुओं ने मुट्ठी कस ली उस दिन अपनी वर्षों पुरानी बढ़ी-बढ़ी पार्टियों का दावा करने वालो को भागने के लिए कोई भी मार्ग शेष नही होगा क्योंकि ये निश्चित है की राम मंदिर का निर्माण तो होगा होगा और होगा। क्योंकि सरकार या कोई व्यक्ति विशेष चाहे राम को राजनेतिक मुद्दा बनैय की धृष्टता कर ले लेकिन ये ज्यादा दिन तक नही चलेगा।अभी तक हिन्दू धर्म पर हो रहे अत्याचारों को हिन्दू ने सहन कर अपनी सहनशीलता का प्रदर्शन किया है ये हिन्दुओं की नपुंसकता नही बल्कि ईश्वर द्वारा प्रद्दत उनका क्षमाशील स्वभाव है लेकिन ये जान लेना भी बहुत आवश्यक है की जब क्रांति होने वाली होती है तो उससे पहले शांति का वातावरण कुछ क्षणों के लिए निर्मित होता है उसे ही सत्य मान लेना मुर्खता है। 

हिंदुत्व की ये शांति क्रांति का मार्ग प्रशस्त करने की और बढ़ रही है, आये दिन हमारे हिन्दू धर्म के उपर आक्षेप विक्षेप करना हमारे धर्म गुरुओं का निरादर करना कहानियाँ बनाकर धर्म को नीचा दिखाने वाली फूहड़ बहस का प्रसारण करना। एके 47 रखने वाले को 145 दिन पहले रिहा कर देना, हिरन मारने वाले और सोते हुए लोगों को मौत के घाट उतारने वाले को बाइज्ज़त छोड़ देना और एक 80 साल के वृद्ध पुरुष को बेल तक नही मिलना ये न्यायपालिका का कैसा दोगला पन है। जिसका समर्थन सुब्रमन्यम स्वामी जैसे बेरिस्टर कर चुके हो अटल बिहारी वाजपयी और नरेंद्र मोदी जैसे लोगों ने जिसके सम्मान में कसीदे पढ़े हो ऐसे हिन्दू धर्म के संतो के साथ अन्याय करना अब बंद कर देने में ही बुद्धिमानी है ऐसा ही जैनेन्द्र सरस्वती और अन्य कई हिन्दू धर्म गुरुओं के साथ हो चुका है।

इतिहास में एक ब्राह्मण हुआ था जिसमे धरती को अनेकों बार ब्राह्मणों का निरादर करने वालों को काल का ग्रास बनाकर समूल नष्ट कर दिया था।आज की परिस्थितियाँ भी ऐसी ही बनी हुई है जहां हमे ऐसे ही विकराल काल रूप धारण करने वाले हिन्दू युवा संगठनों के मनोभावों का सम्मान करते हुए उनके हिंसक स्वरुप को प्रकट होने से रोकना है। सरकार को हिन्दू युवाओं के रोष को समझने और होश में आने की आवश्यकता आन पढ़ी है यदि अभी भी सरकार होश में नही आई तो वो दिन दूर नही जब देश में हिंसक गतिविधियाँ मुंह फाडकर उसके समक्ष खड़ी हो जायेगी तक ये सरकार क्या अपने ही लोकतंत्र को जेलों में बंद करेगी। ये निश्चित रूप से एक संवेदनशील और गंभीर विषय है जिस पर न केवल विचार बल्कि निर्णायक विचार कर कुछ सार्थक कदम भी उठाने चाहिए।  

पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर'

पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर' लेखक, विचारक, लघुकथाकार एवं वरिष्ठ स्तम्भकार सम्पर्क:- 8824851984 सुन्दर नगर, कोटा (राज.)