बिगरी दुनिया
आज ये दुनिया सारी, भैया मोरे, कैसे बिगरी।
सुर सब धर्म छोड़के भागे, बने निशाचर सारे।
नैतिकता का ज्ञान नही है, मानवता उच्चारे।
रक्त रंजित इन्द्र नगरी। कैसे बिगरी ।।
शिक्षा का तो नाम नही है साछर ह्वैगे देवता।
जैसी शिक्षा पाइन वैसे, ह्वैगे बड़े कठवता।
बैठिके चूल्हे लगे, रोटी खाइन सगरी।।
ऊँच नीच का ज्ञान नही है, बात करें असवारी।
पता नही किस मद मे बोलें, असत बात जग सारी।
आज राजा बिनु पगरी। कैसे बिगरी।।
नगर मे देखा इक लँगड़े को, खूब पैसा पावै।
लँगड़ा ह्वैके देश मा घूमे, अनुपम वेश बनावै।
पैर पे अपने मारिन कुल्हरी। कैसे बिगरी।।
नाम कहैमा मात-पिता के, शरम लगत है भारी।
मर्यादा का तोड़ि के ह्वैगे वनमानुष अधिकारी।
हरिश्चंद फंसे अंधेर नगरी। कैसे बिगरी।।