हर इक आदमी
हर इक आदमी बहुत से किरदार लिये फिरता है
हर दौलतमंद जेब में अब सरकार लिये फिरता है
सच बोलने वाला शख्स लोगोँ को बुरा लगता है
झूठा शख्स तारीफों की भरमार लिये फिरता है
कुछ पढ़कर सुनादे वो तो सब ग़मगीन हो जाएं
वो शख़्स हाथ में यारोँ अख़बार लिये फिरता है
किसी ने कहा था उससे कि दौलत बरस जायेगी
अब वो ईमान बेचने का इश्तिहार लिये फिरता है
ये बेरोजगारी देखकर मेरे भीतर से कहता है कोई
कि “वशिष्ठ” तू तो डिग्रियाँ बेकार लिये फिरता है
— जी आर वशिष्ठ