कविता

हम तो चलते -फिरते कवि हैं

हम तो चलते -फिरते कवि हैं
जो आया मन लिख देते है
आप सभी का आशिष पा कर
कुछ न कुछ सिख लेते हैं

हम तो चलते -फिरते कवि हैं
जो आया मन लिख देते है
छ्न्द अलंकृत रस क्या जाने
भावों में लिख देते है
अंजाने में कवियों जैसा
रसना रस भर देते हैं
मधुर-मधुर झंकार करे वन
कोयल कूक सुनाते हैं
आँगन में तुलसी की पूजा
गुरुजन आशिष देते हैं
गंगा जमुना तीरथ संगम
वंदन रवि का करते हैं
भारत माँ श्री चरणों
अभिनन्दन नित करते है
हम तो चलते फिरते कवि हैं
कुछ ना कुछ कह जाते है
भाव भावना उत्तम रख कर
नवल सृजन नित करते हैं
ज्ञान दायिनी सुमिरि शारदा
अनुपम भाव जगाते है
हम भारत माँ के लाल
भाल चंदन सजते हैं
हम गाते है गुण गान
नमन धरती को करते है
भारत सा नहीं है देश
कहीं पर ऐसा नहीं वेश
नमन भारत को करते हैं
सवा अरब जनता के मन में
अगणित बोली वेश
नमन भारत को करते है
हम तो चलते -फिरते कवि हैं
जो आया मन लिख देते है

राजकिशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढ़ी

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि