गज़ल
संभल जाए तबियत जो तेरा दीदार हो जाए
तेरे छूने से अच्छा इश्क का बीमार हो जाए
इन तिरछी निगाहों का निशाना तो गजब का है
चले जो तीर तो सीधा जिगर के पार हो जाए
नहीं कुछ काम का रहता ये कहते थे चचा गालिब
राह-ए-इश्क पर जो भी चले बेकार हो जाए
मुहब्बत में हुकूमत दिल की तुमको सौंप दी वर्ना
इश्क जिस पर नज़र डाले वही सरकार हो जाए
मेरे लफ्ज़ों को मिल जाए सहारा जो तेरे लब का
महफिल लूट ले ऐसी गज़ल तैयार हो जाए
दीवाना कह के मुझको हसने वालो मेरी हालत पे
दुआ करता हूँ तुमको भी किसी से प्यार हो जाए
— भरत मल्होत्रा