गीतिका/ग़ज़ल

बचपन क्या बीत गया उनका

बचपन क्या बीत गया उनका ,
क्या हुआ इन शोलों को, ये जलना भूल गये।
मंजिल करीब आयी तो, ये चलना भूल गये।।

हर गली में (राज) था जिनका, ओ नजर न आते-
है जूस्तजू आंखों में उनकी, वो टहलना भूल गये
क्या हुआ इन शोलों को,………………. ये चलना भूल गये।।

नजर मिलते ही मेरी ओ, बांहों में गिरते थे-
बचपन क्या बीत गया उनका, फिसलना भूल गये।
क्या हुआ इन शोलों को,………………. ये चलना भूल गये।।

चिलमनों के साये में, हर पल ही रहते हैंं-
तोहफा शबाब का मिला, ओ मिलना भूल गये।
क्या हुआ इन शोलों को,………………. ये चलना भूल गये।।

दिल को फ़कत रखना, बडा मुश्किल सा लगता है-
पेंडो से लटकते झूले ओ, अब झूलना भूल गये।
क्या हुआ इन शोलों को,………………. ये चलना भूल गये।।

चाहत बसी जिनकी, मुहब्बत जिनसे करता हॅूं-
बागों में फूल अब ओ, खिलना भूल गये।
क्या हुआ इन शोलों को,………………. ये चलना भूल गये।।

राज कुमार तिवारी (राज)

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782