उपन्यास अंश

आजादी भाग –३०

राहुल ने रोहित को समझाने का प्रयास जारी रखा था ” लगता है तुमने उनकी बातचीत की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया था । लेकिन मेरा पूरा ध्यान उनकी बातचीत की ही तरफ था । कालू ने अपने गुर्गों को यह आदेश दे दिया है कि तुम चारों में से एक को लंगड़ा और दूसरे को अँधा बना दे । और तुम हो कि फिर भी अभी तक उन गुंडों के खौफ में ही जी रहे हो । मेरी समझ में यह नहीं आ रहा है कि तुम जिसे नाराज नहीं करना चाहते वह बिना नाराज हुए भी तुम्हारे साथ क्या करने वाला है तुम्हें उसका भान क्यों नहीं है ? अब फर्ज करो कि निकलने के प्रयास में अगर हम कहीं चुक भी गए तो वह क्या कर लेगा ? वैसे भी बिना कुछ किये ही वह तुम्हें तो लंगड़ा और अँधा बनाने ही वाला है और अगर कहीं नाराज हो गया तो क्या कर लेगा ? क्या जान ले लेगा हमारी ? नहीं ! कभी नहीं ! वह हमें मारने की सोच भी नहीं सकता । हमें वह अपाहिज तो बना सकता है लेकिन जान से मारने की सोचेगा भी नहीं । और उसका कारण है । उसका कारण ये है कि हम ही उसकी नोट छापने की मशीन जो हैं । काफी पैसे खर्च करके वह हमारे जैसे बच्चों का इंतजाम कर पाते हैं । तुम क्या समझ रहे हो असलम भाई ने कालू भाई को ये जो दस बच्चे दिए हैं तो क्या मुफ्त में दिए होंगे ? नहीं ! हमारे बदले में उसने कालू भाई से मोटी रकम वसूल की होगी । इसका मतलब हम उसके लिए तो कीमती हुए न ? ”
अब राहुल की बातें रोहित के दिमाग में गूंजने लगीं ‘ कालू ने अपने गुर्गों को यह आदेश दिया है कि तुम चारों में से एक को लंगड़ा और दुसरे को अँधा बना दे …….’  बड़ी देर तक रोहित के मन मस्तिष्क में राहुल का कहा यह वाक्य गूंजता रहा और राहुल एक टक रोहित के चेहरे पर लगातार बदलते हुये भावों को देखकर उसके मन में चल रही उथल पुथल को महसूस करने का प्रयास कर रहा था ।
राहुल कुछ हद तक रोहित के बदलते भावों को पढ़ने में कामयाब भी हो गया था । लोहा गरम देख आखरी चोट मारने की नियत से राहुल ने बात आगे बढाई ” रोहित ! मैंने अपनी तरफ से तुम्हें समझाने का भरसक प्रयास किया है और मेरा मानना है कि यहाँ तिल तिल कर मरने से बेहतर है कि मुकाबला करते हुए निकलने का प्रयास करें । अगर कामयाब होते हैं तब तो ठीक है और अगर नहीं भी कामयाब हुए तो वैसे भी वह हमारे साथ वही करेगा जो वह चाहता है । फिर भी अगर तुम नहीं चाहते हो कि हम कोई प्रयास करें तो हम तुम्हारी बात भी मानने को तैयार हैं । हम निकलने का कोई प्रयास नहीं करेंगे । लेकिन नुकसान पहले तुम चारों का ही होगा । सोच लो ! ”
अचानक रोहित जो अब तक ख़ामोशी से राहुल की बातें सुन रहा था हाथ उठाकर राहुल को कुछ इशारा करते हुए बोल पड़ा ” ना ना राहुल ! तुम यहाँ से निकलने का प्रयास करना नहीं छोड़ोगे । अब मैं तुम्हारी बात समझ गया हूँ । दरअसल हम लोग इनका जुल्म इतना करीब से देख और भुगत चुके हैं तो अब इनसे पंगा लेने की हिम्मत नहीं हो रही थी । लेकिन तुम सही हो । यहाँ रहकर तिल तिल कर मरने से कोशिश करते हुए मर जाना ही बेहतर है । वैसे भी ये खुश रहकर भी हमारा कहाँ भला करने वाले हैं ?
मैंने तुम्हारी पूरी योजना सुनी है और तुम्हारी योजना पूरी तरह से सुरक्षित और कामयाब होनेवाली है । मैं तुम्हारे सभी साथियों को यह सलाह दूंगा कि वह तुम्हारी बात मानें और पूरे मन से तुम्हारा सहयोग भी करें  । मैं भी तुम्हारा सहयोग करने के लिए तैयार हूँ । ”
” ये हुई न बात ! ” कहते हुए राहुल ख़ुशी से उछल पड़ा था । अपने साथियों की तरफ बड़े ही आत्मविश्वास भरी नज़रों से देखते हुए राहुल ने कहा ” साथियों ! अब हमें यहाँ से आजाद होने से कोई नहीं रोक सकता । बस सबसे विनती है कि मैंने जो कहा है वह न भूलें और मौका मिलते ही प्रयास करना होगा । ऊपर वाले ने चाहा और मैं भी तुम्हारे साथ हुआ तब तो कोई बात नहीं उचित मौका देखकर मैं ही कुछ करूँगा । लेकिन यदि मुझे तुम्हारे साथ नहीं चुना गया तब तुममें से ही किसी एक को मेरी जगह उचित मौका देखकर प्रयास करना होगा । ठीक है ? किसीको कोई शक ? ”
” नहीं ! ” सभी का सम्मिलित स्वर सुनाई पड़ा था । अब राहुल काफी खुश नजर आ रहा था । उसका प्रयास अब सार्थक होने की राह पर था । उसने टीपू को नजदीक बुलाया और उसे अपने कंधे पर सवार होने का इशारा किया । टीपू उसका इशारा समझ गया था और थोड़ी ही देर बाद राहुल के हाथों में पकड़ी हुयी वह दवाई की शीशी जहां पहले रखी थी वैसी ही रखी हुयी दिख रही थी ।
अपना काम पूरा करके राहुल अब थकान महसूस कर रहा था । अब उसे कमजोरी का भी अहसास हो रहा था । पेट में चूहे अलग हुडदंग मचाये हुए थे । राहुल जानबूझ कर वहीँ जमीन पर पड़कर निढाल हो गया । बाकी सभी बच्चे भी अब शांत प्रतित हो रहे थे । सभी के चेहरे पर अब भूख के निशान स्पष्ट दिखाई पड़ रहे थे । अभी दिन डूबने में काफी समय शेष था । शाम के लगभग चार बजने वाले थे ।
तभी बाहर किसी वाहन के रुकने की आवाज आई । राहुल चौंक पड़ा । उसे इस बात की बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी । कालू और साजिद के बीच हुयी बातचीत से उसने अंदाजा लगाया था कि अब सुबह से पहले कोई नहीं आएगा । और इसीलिए वह इत्मिनान से अपनी योजना को अमली जामा पहनाने में मशगुल रहा । लेकिन अगले ही पल उसने भगवान का शुक्रिया अदा किया । वह उनके आने से पहले अपनी योजना बनाने में कामयाब हो चुका था । इतना ही नहीं उसने वह दवाई की शीशी भी यथास्थिति जहां थी और जैसे थी वैसे ही रख दी थी ।
सभी बातों का विचार कर उसने एक बार फिर सभी को इशारे से सावधान करते हुए अपनी योजना याद दिलाई और सभी अलग अलग जमीन पर ही लापरवाही से पड़े रहे ।
थोड़ी ही देर में वही अलमारी नुमा दरवाजा खुला और दो गुंडे से दिखने वाले आदमी आँगन में प्रवेश किये । राहुल इन लोगों को पहली बार देख रहा था ।
राहुल ने इनको देखते ही  बड़े जोरों की भूख लगने की बात बता कर उनसे कुछ खाने की मांग की । वह भली भांति जानता था कि ये गुंडे उसे कुछ नहीं देने वाले थे लेकिन वह फिर भी उनकी नज़रों में सामान्य बने रहने की कोशिश कर रहा था । एक गुंडे ने उसे हलकी सी चपत लगाते हुए भद्दी सी गाली दी । राहुल को बुरा तो बहुत लगा लेकिन उसने जान बुझ कर यह स्थिति पैदा कर दी थी । यह भी उसकी रणनीति का एक हिस्सा ही था । ऐसा करके वह चाहता था कि ये गुंडे दूसरे सामान्य बच्चों की तरह ही उन्हें भी समझे जिन्हें सिवा खाने के कुछ और न सुझ रहा हो । ऐसा करके वह चाहता था कि गुंडे उन लोगों पर अतिरिक्त ध्यान नहीं दें । और ऐसा ही हुआ । आपस में कुछ बात करते हुए दोनों गुंडे कुछ दुविधा में पड़े दिख रहे थे । उनमें से एक ने दुसरे से पूछा ” अबे कमाल ! यार ! साजिद ने तो बताया था कि हमें दस चूजों को बाबा भोलानंद के आश्रम के पास स्थित अपने अड्डे तक पहुँचाना है । लेकिन यहाँ तो दस से अधिक चूजे दिख रहे हैं । अब इनमें से किसको ले जाएँ और किसको छोड़ दें ? ”
दूसरे गुंडे ने जवाब दिया था ” यार ! इसमें कौन सी मुश्किल है ? अभी फोन करके पुछ लेते हैं । ”

 

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।