माया हँसी लोग माहिल बने
फेंक चमचा रहे – हार हरदिल बने ।
मंच सजती रही नाज़ महफ़िल बने ।।
मीत- बनते रहे गीत बिकता रहा।
टंच करने गये प्रीति माहिल बने ।।
काम उनका ख़तम ढा रहें हैं सितम।
भोग काया बनी . नीति जाहिल बने ।।
लोभ माया हँसे रो रही थी गली ।
गीत कैसे लिखूं लोग काबिल बने ।
नींद बनकर हवा जब बिखरने लगी ।
प्रेम लकड़ी सजी गीत हारिल बने।।
छोड़ते जा रहे क्यों डगर प्रेम की।
आज माया हँसी लोग माहिल बने ।।
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढ़ी