ग़ज़ल- क्यों पछताते
दर्द अगर ना हँसकर गाते.
इतनी ख़ुशियाँ कैसे पाते.
छूट चुकी थी गाड़ी तो फिर,
नाहक क्यों हम दौड़ लगाते.
दिल रौशन हो जाता है जब,
वो दिख जाता आते-जाते.
ख़्वावों से यों रिश्ता अपना-
ख़्वाब जगाते ख़्वाब सुलाते.
महफ़िल सूनी थी उसके बिन,
किसको अपने शेर सुनाते.
जो बस उससे ही कहना था,
वो दुनिया को क्यों बतलाते.
उसने दिल की चोरी की थी,
फिर हम क्योंकर शोर मचाते.
सोच-समझ कर सच बोला था,
क्यों घबराते क्यों पछताते.
— डॉ. कमलेश द्विवेदी
मो.09415474674