बाल कविता

बापू के तीन बंदर

पापा कई खिलौने लाए,
मैंने सबके नाम गिनाए,
नाम एक का बता न पाया,
किसी तरह भी समझ न आया.

हाथ एक बंदर के मुख पर,
एक ने आंखें ही ढक ली थीं,
एक कान पर हाथ धरे था,
बात न मुझको समझ पड़ी थी.

पापा बोले, ‘तुम चकराए,
लगता है कुछ समझ न पाए,
ये तो हैं बापू के बंदर,
ज्ञान भरा है इनके अंदर.

हाथ रखे हैं मुख पर जिसने,
वह कहता है बुरा न बोलो,
सत्य ही बोलो, मीठा बोलो,
सोच-समझकर मुंह को खोलो.

जिस बंदर के हाथ आंख पर,
वह कहता है बुरा न देखो,
गंदी बातें, कभी न देखो,
अच्छी बात परखना सीखो.

कान बंद हैं जिस बंदर के,
वह कहता है बुरा न सुनना,
सुनना मीठी-सच्ची बातें,
निंदा-गाली कभी न सुनना.

इन बातों पर चलने वाला,
जीवनभर सुख पा सकता है,
औरों को वह सुख दे सकता,
जग में नाम कमा सकता है”.

पापा की यह बात सुनी तो,
बात यही मेरे मन आई,
बुरा कभी मैं नहीं सुनूंगा,
बोलूंगा-देखूंगा भाई.

सभी ठान लें मन में ऐसा,
देश हमारा एक रहेगा,
राष्ट्र-एकता अमर रहेगी,
भारत प्यारा स्वर्ग बनेगा.

भाषा धर्म के युद्ध न होंगे,
हृदय-सुमन तब खिले रहेंगे,
खुशहाली चहुं ओर रहेगी,
बापू के बंदर भी कहेंगे.
राष्ट्र एकता ज़िंदाबाद,
राष्ट्र एकता ज़िंदाबाद,
राष्ट्र एकता ज़िंदाबाद.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244