मुलाकात कम हो गई है
मुलाकात कम हो गई है,
हमारी उनसे बात, बंद हो गई है,
अब गुफ्तगू भरी रात भी, ख़त्म हो गई है !
रातें कुछ अलग सी हो गई हैं,
बातें कुछ ख़फ़ा सी हो गई हैं,
कभी झाँकतें दिख जाती हैं,
आईने से वह हमें,
पर आवाज़ उनकी भी अब थम सी गई हैं,
वो हक़ जताती बात, उनकी कहीं खो गई हैं !
दबा दिया हमने उन्हें, कैद किया कुछ इस तरह से,
तड़प सी उठीं थीं, कुछ दिन को वो !
आवाज़ हमारी ख्वाहिशों की,
कैद हममें ही हो गई हैं,
एक एक कर, उन्हें दबाते गए हम,और
अब वह नाराज़ हमसे ही हो गई हैं !
— कृतांशा