कविता

मन्नत का पेड़

इन रंगीन कपड़ों के बीच
मेरा भी एक कपडा है
लाल पीले हरे नीले के बीच
मेरा भी एक सपना है
बाँधा था बड़ी महनत से मैंने
कूद कर सबसे ऊपर की डाल पर
पूरी हो पहले मेरी ख्वाइश
सोच टांगा था आसमां छूती डाल पर
मन्नत का पेड़ कभी धोखा नही देता
सुना था मैंने
यह तमन्ना अधूरी नहीं छोड़ता
सच्चे मन से मांगी हर दुआ कुबूल होती है
हजारों के इस भरोसे की सोच
मैं खड़ी मन्नत के पेड़ को निहार रही !

कृतांशा

कृतांशा अरोरा

मैं, कृतांशा अरोरा, बिलासपुर (छत्तीसगढ़) कि रहने वाली हूँ, मेरा जन्म मनेन्द्रगढ़ (छत्तीसगढ़) में १८ अप्रैल १९९१ को हुआ । मुझे हिंदी भाषा पढ़ने में बचपन से ही रूचि थी ! कई तरह की कहानियों कि किताबें मैं पढ़ा करती थी ! पांचवी तक कि पढ़ाई मनेन्द्रगढ़ में कर हम बिलासपुर (छत्तीसगढ़) आ गए ! लिखने में रूचि मुझे १० वि कक्षा से आई ! हालांकि उससे पहले भी थोड़ा बहुत लिखती थी पर दिल से लिखना मैंने १० वि से शुरू किया ! इंग्लिश माध्यम से पढ़ने के बावजूद मैंने खुद को ज्यादातर हिंदी कविताओं से जुड़ा हुआ पाया ! विद्यालय में हिंदी डिबेट, स्पीच प्रतियोगिताओं में मैने सक्रीय रूप से हमेशा भाग लिया, और जीत भी हासिल कि ! कई कार्यक्रम के संचालन भी किये ! कॉलेज कि पढ़ाई एमिटी यूनिवर्सिटी नॉएडा से कर, अब बिलासपुर में रहती हूँ! मुझे बचपन से हि घूमने और नई नई जगह देखने का बहुत शौक रहा है ! नए लोगो से मिलने और उनकी जीवन शैली के बारे में जानने में, मैं अक्सर उत्सुक रहती हूँ , और झिझकती भी नहीं हूँ ! हर बात को कविता के नज़रिये से देखने कि कोशिश ही मुझे आज यहां तक ले के आई है ! मेरा प्रयास यही होता है की लग भग हर रोज़ मैं ज़रा बहुत तो लिख ही लूँ ! क्योंकि इससे मैं अपने आप को खुद से जुड़ा हुआ महसूस करती हूँ ! और खुश भी होती हूँ ! मेरा सोचना है की हमे दिन में कुछ समय ऐसा काम ज़रूर करना चाहिए जो हमे पूरी तरह से ख़ुशी दे ! आगे भी मेरी यही कोशिश रहेगी कि मैं अपनी कविताओं से जुड़ी रहूं, और लिखती रहूं ! लेखनी से खुश रहूं और कहीं ना कहीं किसी की मुस्कान बनूँ !