ऐ ज़िन्दगी
क्यों पल-पल इतना
आजमाती है जिंदगी….
दर्द में भी देती है सजा
मुस्कुराने की
रोता है दिल
हरपल उनकी यादों में
फिर भी जमाने के सामने
दिखाते है होठो पे हँसी
क्यों पल-पल इतना
आजमाती है जिंदगी…..
नहीं होता अब बर्दास्त
ये झूठी बनावटी ख़ुशी
पर क्या करे! मजबूरी है की
पीछा छोड़ती ही नहीं
दर्दे दिल वयाँ करना भी तो
मुमकिन नहीं
अगर हो गई ये गुस्ताख़ी तो…
इस बेदर्द जमाने में अपनी
मुहब्बत की खैर नहीं
नहीं समझेगे लोग मेरे
मासूम मुहब्बत को
आखिर! प्यार को समझ पाना
हर किसी के बस की बात भी तो नहीं।