लघुकथा

सबसे अमीर

सात वर्षीय रामु अपने पापा के साथ अपने मामा के यहाँ जा रहा था । बस से सफ़र के दौरान जब उसके पापा गहरी नींद सो रहे थे एक बस अड्डे पर वह अपने पापा से बताये बिना ही पानी पीने के लिए उतर गया । पानी पीकर जब वह वापस आया तब तक उसकी बस जा चुकी थी । हताश रामु वहीँ बैठकर रोने लगा । काफी देर तक वह रोता रहा लेकिन उस पर किसी का ध्यान नहीं गया । लेकिन उसे अपने पापा के वापस आने का भरोसा था सो वह बस अड्डे में ही जमा रहा ।और  कुछ देर तक उसके पापा नहीं आये तो वह चिंतित हो उठा । बस अड्डे के प्रवेश द्वार के पास ढाबे पर खानेवालों की भीड़ देखकर अब रामू को भी भूख का अहसास होने लगा था ।
ढाबे में से खाना खाकर निकलने वालों को वह भूखी निगाहों से देख रहा था ।  लोग आते खाना खाते और रामू को वहीँ खड़े देख उपेक्षा से निगाहें फेर अपने रस्ते चले जाते । रामू को उम्मीद थी कि कोई अच्छा आदमी अवश्य उसकी तरफ ध्यान देगा और उसे कुछ देगा ।
तभी एक भिखारी महिला ने ढाबे से पीने का पानी लेते हुए रामू को देखा । पानी लाकर वह वहीँ रामू के करीब ही अपना झोला खोलकर बैठ गयी और झोले में से कुछ पुरियां और सब्जी निकाल कर दो पूरी और सब्जी रामू की तरफ बढ़ाते हुए बोली ” ले बेटा ! खा ले ! ताजी हैं । ये बे दिलों की बस्ती है । यहाँ तुझे भोजन करानेवाला कोई दिलदार अमीर नहीं मिलेगा । ”
” सही कहा आपने आंटी ! लेकिन मुझे इस बात की खुशी है कि इस समय मैं ‘ सबसे अमीर ‘ आंटी के साथ खड़ा हूँ । ” कहते हुए रामू ने जैसे ही उस महिला से पूरी सब्जी लेने के लिए हाथ बढ़ाया उसे सामने से उसके पापा आते हुए दिख गए ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।