काव्यमय कथा-1 : लोभी रामू
रोज़ सवेरे मुर्गी चिनचिन,
सोने का अंडा देती एक,
खुश हो रामू ले लेता था,
कहता मुर्गी कितनी नेक!
एक दिवस आया जब लेने,
अंडा मुर्गी चिनचिन का,
सोचा उसने क्या ही अच्छा,
खत्म को झंझट हर दिन का.
सारे अंडे साथ लेने को,
चाकू ले तैयार हुआ,
एक बार भी परिणाम का,
उसने नहीं विचार किया.
चाकू से कट मुर्गी मर गई,
अंडा निकला एक नहीं,
लोभी रामू रोता रह गया,
लोभी होना ठीक नहीं.