कह दो !
कभी थमती कभी उभरती
ह्रदय की उन भर्मित धड़कनो ने
छेड़ा है फिर मधुर अहसास
जो कहता है बार बार
कह दो ! कह दो इक बार
वो जो कहना था तुमको
हमराही से अपने कभी
कह दो न सोचो फिर
न जाने फिर वो हमराही
हमसफर न बनकर राहें
जुदा कर अपनी मंज़िल
को तलाशता चला जाए
न फिर लौटे कभी
उस राह पर यहां
तुम उससे मिले थे यूं !
कामनी गुप्ता ***
जम्मू !