काव्यमय कथा-17 : लालच बुरी बला है
हड्डी एक बड़ी ले मुंह में,
कुत्ता एक बहुत हर्षाया,
कहीं अकेले में खाने की,
मन में ठान नदी पर आया.
पानी में परछाई देखी,
कुता एक हड्डी दाबे था,
सोचा उसने वह भी ले लूं,
सचमुच वो नादान बहुत था.
उसकी भी हड्डी लेने को,
जैसे अपने मुंह को खोला,
मुंह से हड्डी गिरी नदी में,
बड़ा दुःखी हो कुत्ता बोला.
”आधी छोड़ पूरी को धाए,
न आधी रहे न सारी को पाए,
लालच बुरी बला है बच्चो,
अच्छा वो जो हिलमिल खाए”.
यह ”चित्रमय-काव्यमय कहानी” की आखिरी कहानी है, जो आज से 40 साल पहले अपने भतीजे के पहले जन्मदिन पर मैंने उसे उपहार-स्वरूप दी थी. ये चित्रमय-काव्यमय कहानियां उस समय मिलने वाले रंग-बिरंगे चार्टों पर आधारित हैं. इसी पुस्तिका से उसके व उसके भाई-बहिन के बच्चे भी अपनी कहानी सुनने व ज्ञान प्राप्त करने की पिपासा तृप्त कर सके हैं. आशा है, यह पुस्तक आपको भी पसंद आई थी.