कविता

हाथों की लकीरें

कभी बँद करूँ मैं मुट्ठी, तो कभी बँद मुट्ठी मैं खोलूँ !
क्या ढूंढ़ते हैं इनमें, ये राज कैसे बोलूं !!

सब जोड़ कर लकीरें, इक अक्स हैं बनाते !
फिर करके बँद मुठ्ठी, उसको ही हैं छुपाते !!

एे काश ! ऐसा होता कि ख्वाब पूरे होते !
तो छोड़ कर लकीरें, हम ख्वाब ही सजोते !!

ख्वाबों-ख्यालों की दुनिया, यूँ तो बड़ी हसीं है !
सब मिल जाता है उसमें, हकीकत में जो नहीं है !
….. किस्मत में जो नहीं है !!

अंजु गुप्ता

*अंजु गुप्ता

Am Self Employed Soft Skill Trainer with more than 24 years of rich experience in Education field. Hindi is my passion & English is my profession. Qualification: B.Com, PGDMM, MBA, MA (English), B.Ed