कविता : माँ को पयाम
मैं ख्याल की धरती पर माँ को पयाम लिखती हूँ
अता की जो तुमने ये दुनिया मुझे
सिर को झुकाकर तेरा आवाहन करती हूँ
कहते हैं माँ हो तो कद्र होती है ,
तुम होती तो मेरी भी कद्र होती
मेरे लिए भी कोई आँख तो रोती
अब तो अपने ही आंसू से, तेरे नाम को लिखती हूँ
मैं ख्याल की धरती पर, माँ को पयाम लिखती हूँ
तेरे साये में मुझे इल्म न था जहां का
जीवन तो बस बसंत था, असर ये तेरी दुआ का
अब तो इस खाली दर्पण में तेरे अक्स को भरती हूँ
मैं ख्याल की धरती पर माँ को पयाम लिखती हूँ
— चन्द्रकांता सिवाल ‘चन्द्रेश’