“सवैया-मुक्तक”
जग जननी हे माँ जगदंबे, नमन करूँ दर्शन अभिलाषी
उन्नति प्रगति विकास विराजे, राक्षस मर्दिनी माँ कैलाशी
कृपा करो मो पर महतारी, भव भक्तन दुख हरने वाली
शक्ती भक्ती नियती बाढ़े, बाढ़े सुत पुत घर घर काशी॥-1
उत्कर्ष उदय उत्थान करो, माँ मन में मानवता भरदो
नयन नयन में हो उतकंठा, नयन झुके नहि माँ यह वरदो
संस्कार संस्कृती भारती, सभी धरा को उर्बर हल दो
राह सुगम हो मनन प्रखर हो, ज्ञान उदय माँ जनजन करदो॥-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी