कविता

ठूंठ

इक ठूंठ देखता मैं प्रतिदिन
पाकघर के झरोखे से।
खड़ा-खड़ा मैं सोचा करता,
जीवन के हर कोने से।।

टीन का डिब्बा बगल पड़ा,
खाली प्लास्टिक बोतल संग में।
इनकी कीमत कभी बहुत थी,
आज लिए हैं मिट्टी मुंह में।।

ठूंठ कभी छाया देता था,
फल देता था मधुर मधुर।
सूखे तन को दीमक खाते,
खाए थे फल मधुर मधुर।।

ठूंठ अभी यह मरा नहीं,
तन सूखा है पर काठ नहीं।
जीवन जड़ में जिंदा है,
हमको इसकी फिकर नहीं।।

जंग लग गया डिब्बे में,
खाली होते ही फेका था।
मतलब अपना साध लिया,
तब सही सलामत फेंका था।।

बोतल अभी सलामत है,
दिन आगे बड़ा भयानक है।
धूप से इसको जलना है,
आह तनिक ना भरना है।।

फिर बारिश की बूँदें छनके गी,
जले हुए तन पर टपके गी।
झाडी उगेगी अगल बगल में,
सडी गली बदबू चिपकेगी।।

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।। जय माता दी।।
प्रदीप कुमार तिवारी
करौंदी कला, सुलतानपुर
7537807761

प्रदीप कुमार तिवारी

नाम - प्रदीप कुमार तिवारी। पिता का नाम - श्री दिनेश कुमार तिवारी। माता का नाम - श्रीमती आशा देवी। जन्म स्थान - दलापुर, इलाहाबाद, उत्तर-प्रदेश। शिक्षा - संस्कृत से एम ए। विवाह- 10 जून 2015 में "दीपशिखा से मूल निवासी - करौंदी कला, शुकुलपुर, कादीपुर, सुलतानपुर, उत्तर-प्रदेश। इलाहाबाद मे जन्म हुआ, प्रारम्भिक जीवन नानी के साथ बीता, दसवीं से अपने घर करौंदी कला आ गया, पण्डित श्रीपति मिश्रा महाविद्यालय से स्नातक और संत तुलसीदास महाविद्यालय बरवारीपुर से स्नत्कोतर की शिक्षा प्राप्त की, बचपन से ही साहित्य के प्रति विशेष लगव रहा है। समाज के सभी पहलू पर लिखने की बराबर कोशिस की है। पर देश प्रेम मेरा प्रिय विषय है मैं बेधड़क अपने विचार व्यक्त करता हूं- *शब्द संचयन मेरा पीड़ादायक होगा, पर सुनो सत्य का ही परिचायक होगा।।* और भ्रष्टाचार पर भी अपने विचार साझा करता हूं- *मैं शब्दों से अंगार उड़ाने निकला हूं, जन जन में एहसास जगाने निकला हूं। लूटने वालों को हम उठा-उठा कर पटकें, कर सकते सब ऐसा विश्वास जगाने निकला हूं।।* दो साझा पुस्तके जिसमे से एक "काव्य अंकुर" दूसरी "शुभमस्तु-5" प्रकाशित हुई हैं