गीत/नवगीत

छत्रपति शिवाजी महाराज की 337 वीं पुण्यतिथि पर ….समर्पित शब्द सुमन ??? विधा…लावणी छंद में एक गीत

धन्य हुआ शिवनेर दुर्ग था, धन्य हुई भारत माता।
जन्म लिये जब वीर शिवाजी, धन्य हुई जीजा माता।
लालन-पालन किया शिवा का, कथा सुनाती वीरों की ।
धर्म-जाति पर मिटने वाले,उन सारे रणधीरों की।
कूट-कूट कर भाव भरे थे, मातृभूमि के प्रति ज्ञाता।
धन्य हुआ शिवनेर दुर्ग था…….(१)

भाले बरछे तीर चलाना, निपुण हुए थे बचपन में।
किया कुशल था युद्ध कला में , दादाजी ने जीवन में।
वीर शिवा की उम्र तनिक सी , किले कई वो जब जीता।
धन्य हुआ शिवनेर दुर्ग था….(२)

छद्म- कपट से दूर सदा ही, वीर बड़े बलिदानी थे।
अफजल खां को किया विफल था, स्वाभिमान सैनानी थे
थर-थर जाता काल कपाली, उदित पुंज जब-जब होता।
धन्य हुआ शिवनेर दुर्ग था…..(३)

हिन्दुस्ता की शील- शांति को, जबजब भी जाता तोडा।
काल- पृष्ठ पर चिन्हित होता, राज्य मराठा का घोड़ा।
छिन्न-भिन्न था राष्ट्र प्रेम जब, छिन्न- भिन्न भारत माता।
धन्य हुआ शिवनेर दुर्ग था……(४)
……अनहद गुंजन

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*