“मुफ्त में ऊपर का सफ़र”
बचपन में फिल्मों का बहुत चस्का लग गया था। घर वालों को कुछ झूठ मूठ बता देते, वोह मान जाते कि बच्चे बहुत पढ़ाई कर रहे हैं। बाइसिकलों पर गाँव से शहर जाना भले ही मुश्किल हो लेकिन हम लड़कों के लिए तो यह हर रोज़ हॉलिडे होती थी। कितना मज़ा आता था फ़िल्में देखने का। फिल्म देख कर सभी लड़के गाँव को चल पड़ते और फिल्म की बातें ही करते आते। यूँ तो हम सभी फ़िल्में देख लेते थे लेकिन कोई जादू की फिल्म या धार्मिक तो छोड़ते ही नहीं थे। जादू का चराग, हातमताई और राम भगत हनुमान या कृष्ण जी की फ़िल्में तो बहुत शौक से देखते थे। इन में महिपाल का राम या कृष्ण बनना हमें बहुत अच्छा लगता था। उस का मुस्कराता चेहरा सच में राम या कृष्ण लगता था। वी ऐम विआस जादूगर और जीवन का नारद मुनि बन कर नारायण नारायण करना हमें बहुत अच्छा लगता था। जादू के चराग में जब लैम्प को हाथ से घिसाया जाता तो बड़ा सा जीनी हा हा हा करता परदे पर बड़ा होने लगता और कहता, ” आका ! कहो किया हुकम हैं “, सारा सिनिमा हाल जैसे एक जगह खड़ा हो जाता, सब की आँखें उस जीनी के बोल पर मूर्ति बन जातीं। एक बात है कि उस समय यह फ़िल्में ठीक थी या गलत, कोई टीका टिपणी नहीं होती थी, इसे सच ही मान लेते थे। अब नई नई बड़े बजट की फ़िल्में आ रही हैं लेकिन देखने को मन नहीं करता। इंटरनेट पे हज़ारों फ़िल्में हैं लेकिन एक भी देखि नहीं लेकिन जो तस्वीर बचपन से उन जादू या धार्मिक फिल्मों की बनी हुई है, यह जानते हुए कि वोह सभी imaginative ही थीं, दिमाग पे उन की एक छाप लग चुक्की है, शायद इस में छुपा हुआ वोह बचपन ही है जो हम खोना नहीं चाहते।
खैर वोह तो बचपन था। जवानी में पब्ब ही अच्छे लगने लगे थे। दोस्त इकठे हो कर बीअर पीते, बातें इतनी करते कि हर कोई यही बोलता, ” यार पहले मेरी बात सुन “, यूँ ही कोई कहता यार उस शहर में नया पब्ब खुला है, यहां की बियर डैनमार्क की है, तो गाड़ियां उठाते वहीँ चल पड़ते। बीअर का तो बहाना ही होता था, बहाना तो बातें और सैर करने का ही होता था। कोई भी दोस्त शराबी नहीं होता था। फिर भी कभी कभी कुछ ज़्यादा भी हो ही जाती थी। ऐसा ही एक दिन था। अर्धांगिनी साहिबा किसी काम के सिलसिले में इंडिया गई हुई थी और जाते वक्त बहुत बड़ी लिस्ट भी दे गई थी जो काम मैंने करने थे। इन में ही एक काम था एक कमरे में कार्पेट डालना। फज़ूल बातों पर समय बर्बाद न करूँ मैंने बहुत सुन्दर कार्पेट का आर्डर दे दिया और वोह आ कर कार्पेट फिट कर गए। मन खुश हो गया और पत्नी के तेवर से आज़ाद हो गया। उसी दिन शाम को सभी दोस्त मेरे घर आ गए। कार्पेट देख कर वधाईआं देने लगे और हंसने लगे कि अब नई कार्पेट की पार्टी तो बनती ही है। लो जी नज़दीक ही एक पब्ब में डेरे डाल दिए, यहां पहले ही कई दोस्त बीयर के ग्लास लिए हुए ऊंची ऊंची हा हा कर रहे थे। किया पीना है, किया पीना है, कहते हुए हर कोईं बटुए से नोट निकाल रहा था। भट्टी गर्म थी, लोहा गर्म होने लगा । लो भई दोस्तों, आज इस ने कमरे में नई कार्पेट पाई है, इस की आज पार्टी हैं और सभी ऊंची ऊंची हंसने लगे।
जब कोई पीता है, चाहे मामूली सी पीता हो लेकिन एक वक्त तो ऐसा आ ही जाता है, जब उस को ज़्यादा पीनी पढ़ जाती है। आज मेरा भी यही हाल था। गयारह बजे पब्ब बंद हुए और घर आ गए। के ऍफ़ सी भी साथ ही ले आये थे। अब मेहमानों की आवभगत तो करना बनता ही था, कैबनेट खोली और कौन सी पीनी है, तो सभी ने सदर्न कम्फर्ट की ओर इछारा कर दिया, कि अब लेडीज़ ड्रिंक ही हो जाए। पीते पीते, हंसते हंसते और बातें करते करते काफी रात बीत चुक्की थी। दोस्त कब गुड़ नाइट कह के चले गए, कोई होश नहीं रहा और मैं सीधा बैड पे जा लेटा और लेटते ही बेसुध सा हो गया। तभी बिजली कड़की, तेज रौशनी से कमरा दिन जैसा हो गया। उठा, और देखा एक भैंसा मेरे कमरे में घुस चुक्का था और उस भैंसे पे बड़ी बड़ी मूंछों वाला, मुकट पहने मुझे बहुत भारी गदा दिखा रहा था। गोबर से खराब हुई कार्पेट को देख कर मुझे गुस्सा आ गया। ओए नामाकूल ! तेरा दिमाग भी भैंसे जैसा है, देख आज ही मैंने यह नई कार्पेट डाली है और तूने खराब कर दी। मैं अभी पुलिस को टेलीफोन करता हूँ, तुझे सारे पैसे भरने पड़ेंगे। मुकट वाला राक्षश जैसा आदमी हा हा करता हंस पड़ा और बोला, ” मैं यमराज हूँ, अब तुझे लेने आया हूँ, इस धरती पर तेरे दिन अब ख़तम हो गए “, किया बकवास करता है तू, मैंने तो अभी बहुत काम करने हैं, मैंने बोला। हा हा करते यमराज ने मुझे कलाई से पकड़ा और एक झटके के साथ मुझे भैंसे पर बिठा लिया। कैसे दरवाजे से बाहर आया, मुझे पता ही नहीं चला, बस जल्दी ही पता चल गया कि अब तो हम हवा से बातें करते हुए आसमान की ओर उड़ रहे थे। यार तू बोलता क्यों नहीं, मैं उस राक्षश की ओर देख कर चीख सा उठा। यम राज ने पीछे की ओर मुड़ कर देखा, वोह बोला नहीं, बस मुस्करा रहा था। मुझे कुछ ऐसा महसूस हुआ, जैसे मैंने उस को कहीं देखा हो।
कुछ ही देर बाद हम बादलों में से घिरी एक नगरी में लैंड हो गए। हर तरफ सोने चांदी के महल, हरे भरे फूलों से लदे बाग़, तरह तरह के पछू पक्षी और खूबसूरत लोग देख कर मन बाग़ बाग़ हो उठा। जब उस ने मेरी तरफ देखा तो मुझे उस की शक्ल हमारे गाँव के गब्बर चंद से मिलती जुलती महसूस हुई जो दो साल हुए एक एनकाउंटर में मारा गया था। ऊंची ऊंची हँसता हुआ यम राज बोला, ” तू ने ठीक पहचाना है, मैं गब्बर चंद ही हूँ जो मारा गया था “, तो तू यहां किया कर रहा है, मैंने पुछा। वोह बोला, जब तुझे पता चल ही गया है तो बता देता हूँ, अभी अभी यह यम राज की पोस्ट खाली हुई थी, बहुत देर से मैंने एप्लाई किया हुआ था, जिसम में सभ से तगड़ा होने के कारण सिलैक्शन में मेरी किस्मत जाग उठी और यह मेरा पसंदीदा काम है। अब तू मुझे ले कहाँ ले कर जा रहा है, मैने पुछा। वोह बोला,” तुझे धर्मराज जी के सामने हाजर होना होगा, यहां तेरे कर्मों के हिसाब से फैसला होगा अब तो धर्म राज जी की कचैहरी बन्द है, सुबह तुझ को पहले चित्र गुपत से क्लीरेंस सर्टिफिकेट लेना पड़ेगा, सर्टिफिकेट ले कर तुमारी पेशी होगी और तेरे कर्मों के हिसाब से तुझे नरक या स्वर्ग में भेज दिया जाएगा “, अब मैं डर गया और बोला, ” यार मुझे नरक की आग से बहुत डर लगता है “, यमराज बोला, ” अब तू तो हमारे गाँव का ही है, तेरी मदद करना तो मेरा धर्म है, चित्रगुप्त के साथ मेरे सम्बन्ध बहुत अच्छे हैं, कभी मैं उस की मदद कर देता हूँ और कभी वोह मेरी मदद कर देता है, वोह तेरी अच्छी रिपोर्ट लिख देगा तो धर्मराज जी भी तुम को अच्छी जगह भेजेंगे “, मैंने कहा, यार मैंने तो सुना था, यहां दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है, फिर मुझे अच्छी रिपोर्ट कैसे मिल सकेगी। वोह हँसता हुआ बोला, ” भारती लोगों ने यहां सभ कुछ भारत जैसा कर दिया है, अब यहां सभ कुछ चलता है, कुछ लोगों की पहुँच तो धर्मराज जी तक भी है, वैसे भी यहां काम बहुत बढ़ गया है क्योंकि दुनिआं की आबादी बहुत बढ़ गई है और भारत में लोग बेटियों को कोख में ही ख़तम कर देते हैं और हमें उन की रूह लेने के लिए बार बार भागना पड़ता है, तभी तो कोई यमराज की पोस्ट पर ज़्यादा देर ठहरता नहीं है आज तू मेरे महल में आराम कर, सुबह देखेंगे कह कर वोह मुझे एक महल में छोड़ गया और खुद अपने भैंसे पर बैठ कर आस्मां की तरफ उड़ गया.
हीरों जड़े सोने के पलँग पर रात गुज़ारने के बाद मैं उठा, दासियाँ हाथ जोड़े खड़ी थीं, उन्होंने मुझे गर्म पानी के हमाम में नहलाया और ब्रेकफास्ट की भरी प्लेटें मेज पर रख दीं। ऐसा खाना ज़िन्दगी में कभी नहीं खाया था, जी चाह रहा था कि मुझे यहीं रहने की इजाजत मिल जाए। खा ही रहा था कि यमराज आ गया। आते ही उस ने मुझे चित्रगुप्त से लाइ रिपोर्ट दिखाई। रिपोर्ट बहुत बढ़िया थी। कुछ देर बाद हम दोनों धर्मराज जी के दरबार में पहुंचे। हम से पहले एक आदमी धर्मराज जी के आगे गिड़गिड़ा रहा था, ” महाराज ! रहम करो, मैंने सारी उम्र कोई बुरा काम नहीं किया, फिर मुझे आग में क्यों फैंका जा रहा है ” , ” ले जाओ इसे और दूसरे को हाजर करो ” धर्मराज बोला और वोह आदमी रोता हुआ जा रहा था और बोल रहा था, धर्मराज तेरे राज में अंधेर है, कोई इन्साफ नहीं, बुरे लोगों को स्वर्ग मिलता है और सच्चे लोगों को नरक। मैं खड़ा खड़ा कांप रहा था। मेरा नाम ले कर किसी ने पुकारा और मैं धर्मराज जी के आगे हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया। धर्मराज जी ने मेरी फ़ाइल देखि और हुकम दिया की मुझे स्वर्ग में भेज दिया जाए। मन से खुश और धर्मराज की जय हो के नारे लगाता मैं बाहर आ गया। यम भाई सामने खड़ा था और बोला, मेरा तो आज कोई काम नहीं है क्योंकि तेरे लिए मैंने छुटी ले ली है, अब चल तुझे सब कुछ दिखाऊं लेकिन अगर धरती पर जाना पड़ा तो किसी को बताना नहीं, नहीं तो तुझे फिर यहां आना पड़ेगा। उस ने कलाई पर कुछ नंबर डायल किये और हम दोनों आस्मां में उड़ने लगे। नीचे स्वर्ग का नज़ारा दीख रहा था।
मैंने पुछा, यार ! यहां सभी धर्मों के लोगों के फैसले होते हैं ? तो उस ने जवाब दिया, यहाँ सिर्फ हिन्दू सिख जैनी और बोधि ही आते हैं। उस ने एक झिल मिल करती पहाड़ी की ओर इच्छारा किया कि वहां इस्लाम धर्म के लोगों की जनत है और उस में ही एक तरफ दोजख है। उधर ईसाई पारसी जिऊज़ और अन्य धर्मों के लोग जाते हैं। एक बात बताऊँ, यहां भी अब फैसले बहुत गलत होने लगे हैं, हिन्दू लोगों में बुरे लोगों को अप्सराएं मिल जाती हैं और अच्छे लोगों को नरक की आग में फैंक दिया जाता है। इसी तरह मुसलमानों में बुरे लोगों को हूरें मिल जाती हैं और अच्छे लोगों को दोजख की आग में जलना पड़ता है। एक जगह आ कर हम लैंड हो गए। गब्बर बोला, भाई जो तू सोचता है, मैं समझता हूँ और तुझे बताता हूँ कि धरती पे लोग स्वर्ग नरक की बातें करते करते अजीब अजीब खयालों में खो जाते हैं लेकिन यह भी एक धरती जैसा प्लैनेट ही है, सिर्फ यहां अपने अपने कर्मों के हिसाब से फैसले होते हैं, या कह लें कि सारी ज़िन्दगी के कर्मों का फैसला इसी हैड ऑफिस में होता है। इसी तरह दूसरे प्लैनिटों या ऐस्टरॉयड पर दफ्तर बने हुए हैं। एक प्लैनेट से दूसरे प्लैनेट पर जाने के लिए रास्ते बने हुए हैं जो हमें भी दिखाई नहीं देते, इन को गोपनीय रखा जाता है। अब यह नए प्लैनेट भी एलिअनज़ से भरने लगे हैं, इसी लिए काम बहुत बढ़ गया है। काम का बोझ तो बढ़ रहा है लेकिन खर्चे कम किये जा रहे हैं क्योंकि मारज़ यूपीटर और दूसरे प्लैनिटों को रास्ते बनाने हैं, यह इस लिए कि धरती पर जगह कम पढ़ गई है और लोग उधर जाने शुरू हो जाएंगे। काम ज़्यादा बढ़ने के कारण यहां गलत फैसले हो जाते हैं, मस्लिन, धरती के एक शख्स को अपने पर नए बॉस बहुत दुःख देते थे, उस ने भगवान् को पत्र लिखा और अर्ज की कि वोह बहुत दुखी है और इस काम से उस का छुटकारा दिला दे। दो साल तक कोई जवाब नहीं आया, जब तक उस का काम बहुत अच्छा हो गया क्योंकि नए बॉस आ गए थे। उस ने फिर पत्र लिखा कि भगवान् उस की अर्जी को अब इग्नोर कर दे क्योंकि वोह अब सुखी था। भगवान् के दफ्तर से उस को एक दिन खत मिला कि उन्हें खेद है कि जवाब देने में देर हो गई लेकिन उस की अर्जी मंजूर हो गई है और उस को काम से छुटी दिला दी गई है। अब यह शख्स रो रो कर अपनी दुसरी चिठ्ठी का इंतज़ार कर रहा है।
एक दम गब्बर चंद का चेहरा कुछ अजीब सा हो गया, कुछ देर बाद मुझे बोला, ” भाई ! एक और गलत फैसला हो गया है, जो मैसेज मुझे दिया गया था, उस पे किसी और का नाम लिखना था और लिख हो गया तेरा। भाई, जल्दी से भैंसे पर बैठ, ऐसा न हो तेरे शरीर को लोग जला दें, नहीं तो तू खामखाह भटकता रहेगा। यूँ ही मैं ने भैंसे पर बैठ कर आँखें बंद कीं, मैं अपनी बैड पे करवटें ले रहा था और पिछली रात के नशे से सर चकरा रहा था। सर दबाते दबाते मैंने कार्पेट की और देखा जो बिलकुल साफ़ थी। खुश हो कर मैं उठा और चाय बनाने लगा।