कविता

अहल्या उद्धार

संवेदनाएं जब मर जाती हैं, जीवन पहाड़ सा बन जाता है,
हर पल- पल-पल जीवन का, शिला सा भारी हो जाता है।

अहल्या क्यों शिला बनी थी, आज समझ में आता है,
परित्याग जब किया पति ने, पत्थर बनना ही भाता है।

संवेदना के दो बोल भी, ऋषि डर से जब नहीं मिले,
एकांत का हर एक पल उसका, पर्वत सा बन जाता है।

परित्यक्ता अहल्या से जब, राम ने आ संवाद किया,
संवेदना की अपनी बातों से, उलझन को भी दूर किया।

पिंघल गयी पाषाण प्रतिमा, आँसू से सारा पाप धुला,
सम्वेदना के दो बोल से, अहल्या का उद्धार हुआ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन