लेख – खोखली शिक्षा प्रणाली
आज शिक्षा प्रणाली अपने सबसे अधिक भ्रष्ट दौर से गुजर रही है। शिक्षा को अंदर ही अंदर दीमक ने खाकर खोकला कर दिया है। आज शिक्षा में शिक्षा जैसा कुछ नहीं है सब कुछ भिक्षा बन चुका है। शिक्षा बिना ज्ञान का दिखावा मात्र है।
सभी विद्यालयों के बीच में सिर्फ अंकों की होड़ लगी है । वह अंक छात्र को कैसे और कहाँ से मिल रहे हैं। यह सुनते ही आप के होश फाख्ता हो जाएगें ।
कहां से आगाज़ करूँ मेरी तो समझ से बाहर है फिर भी कोशिश करती हूं। यह सब मैं अपनी आँखों देखी लिख रही हूँ ।
सबसे पहले तो सी. सी. ई प्रणाली जो हमारे कपिल सिब्बल भाई ने प्रारंभ की थी। वह पूरी तरह नकारा है । इस प्रणाली ने दस साल में बिना पढ़े 80% प्रतिशत अंक लाने वालों की एक बहुत बड़ी जमात पैदा की है । अपवाद स्वरूप इसमें अच्छे छात्रों का भी नुकसान हुआ है ।
इस प्रणाली में 70% प्रतिशत अंक स्कूल के होते हैं। अब एक दो अच्छे या ईमानदार स्कूलों को छोड़कर बाकी सभी स्कूल अपना रिजल्ट अच्छा करने लिए 70 में कम से कम 60-65 अंक अवश्य दे देते हैं ।चाहे बच्चे को ठीक से अपना नाम भी लिखना न आता हो । बाकी के तीस अंक की कहानी तो अभी बाकी है। तो अब 30 अंक की कहानी भी सुन लीजिए ।
इसमें भी दो प्रकार का बोर्ड रखा गया है
एक वास्तविक और दूसरा कृत्रिम ।
मैंने इसे कृत्रिम इसलिए कहा क्योंकि इसमें अपने विद्यालय में अपने शिक्षकों के संरक्षण में बड़े आराम से परीक्षा दी जाती है। आराम से यानी लेट कर नहीं बल्कि देख कर परीक्षा दी जाती है। विषय का ज्ञाता अध्यापक पेपर को सॉल्व करके बच्चों को दे देता है। कोई देखने वाला नहीं होता है । अगर कोई अधिकारी गल्ती से आ भी जाता है। तो वह ऑफिस से चाय पानी पीकर चला जाता है। वह परीक्षा भवन में झांकता भी नहीं है ।भाई हैं तो सभी एक ही थैली के चट्टे- बट्टे । कौन नहीं जानता चोर चोर मौसेरे भाई होते हैं।
तो इस प्रकार मैट्रिक की बोर्ड परीक्षा में मेरा बच्चा 100% अंक लाया है । कितनी मजेदार व चटपटी परीक्षा है ।
अरे अभी वास्तविक बोर्ड तो रह ही गया ।जिसमें 70% अंक मिल ही चुके हैं बाकी 30% अंक के लिए बहुत ही अच्छे ढंग से किसी दूसरे स्कूल में, दूसरे अध्यापकों के बीच यह परीक्षा होती है। पर सीट इतनी पास पास होती है कि आँख बेचारी सब काम कर लेती है मुंह को कुछ करना नहीं पड़ता है।
चलिए परीक्षा तो हो गई अब कॉपी चैकिंग हॉल में चलते हैं । एक दिन में एक शिक्षक को 20-25 कॉपी चेक करने की अनुमति होती है। पर पैसे की लालच में एक दिन में 50-50 कॉपी तक चांज ली जाती है। देखने वाला कोई नहीं है। क्योंकि सब एक ही थैली के चट्टे…… हैं । उस पर भी आलम यह है कि हैड के द्वारा सक्त हिदायत दी जाती है कि किसी भी बच्चे को फेल नहीं करना है चाहे उसने पेपर में प्रश्न ही क्यों न लिखें हो ।
90 में 30 अंक तो देना अनिवार्य है ।हाँ ! अगर किसी ने प्रश्न भी नहीं उतारे हैं तो मजबूरन हाथ बांधने पड़ते हैं।
तो भैया यह आज की मैट्रिक की सी. बी, एस. ई शिक्षा प्रणाली है।
अरे परीक्षा परिणाम भी आ गया । मेरे विद्यालय के 300 बच्चों में से 100 बच्चों को ग्रेड पाइंट 10 मिला और बाकी सभी बच्चों को लगभग 8 से 9 के अंदर है । मिठाई तो बनती है। पर गेहूँ के साथ घुन भी पिस रहे हैं। कुछ विद्यालयों के बच्चे वाकई काबिले तारीफ़ हैं ।बहुत मेहनत से पढ़ते हैं । सभी विषयों में उनका ज्ञान विस्तृत है। पर क्या ,सब तुलते तो एक ही तराजू में हैं । तो भाई आप ही बताएं इस शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन होना चाहिए या नहीं ।
— निशा नंदिनी
असम