“हो गयी पूरी कहानी”
ढल गयी है अब जवानी
मिट गयी है सब रवानी
शाम देती है अन्धेरा
सुबह होती है सुहानी
दे रहे खण्डहर गवाही
बस यही थोड़ी निशानी
जिस्म में अब दम नहीं है
सिर्फ जुमले हैं जुबानी
आजमाती हर बशर को
जिन्दगी कितनी सयानी
जर्द हों पत्ते भले ही
रौब अब भी है पठानी
“रूप” अब वैसा नहीं है
हो गयी पूरी कहानी
— डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’