गज़ल
खुद से वो शर्मिंदा निकला,
चलो कोई तो जिंदा निकला,
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अजनबी जैसा लगता था पर,
बस्ती का बाशिंदा निकला,
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मेरे बाद मेरे कमरे से,
खतों का एक पुलिंदा निकला,
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चोर जिसे समझे थे सारे,
सरकारी कारिंदा निकला,
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शाम पड़े दिल में लौट आया,
गम भी एक परिंदा निकला,
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।