जन्मदिन और विवाह की सालगिरह साथ-साथ? भई वाह!
आज हम यहां बधाइयां शुभकामनाएं देने के लिए उपस्थित हुए हैं. बधाइयां भी दोहरी-दोहरी. दोहरी बधाइयों का ऐसा स्वर्णिम सुअवसर कम ही आता है. स्वर्णिम से हमें ध्यान आया कि उनकी स्वर्णिम जयंती यानी golden jubilee भी है. आगे बताने से पहले उनको बधाई देते चलें-
प्रिय गुरमैल भाई और कुलवंत जी,
”शादी की Great golden jubilee सालगिरह मुबारक हो,
यादों-वादों का सुहाना सफर मुबारक हो,
रहे खुशहाल-मंगलमय सदा ज़िंदगी,
आपसी प्यार, समर्पण और सुंदर तालमेल मुबारक हो.”
यह तो हुई पहली बधाई प्रिय गुरमैल भाई और कुलवंत जी को उनकी शादी की Great golden jubilee की, अब दूसरी बधाई प्रिय गुरमैल भाई जी को उनके 74वें जन्मदिवस पर.
प्रिय गुरमैल भाई जी,
”मन-अंगना में सजा है मेला, लाया खुशियां अपार,
जीवन में हो नई ताज़गी, पाओ सबका प्यार,
आशीषों की हों बरसातें, मिलें दुआएं सबकी,
जन्मदिवस की पावन वेला, आए बारंबार.”
प्रिय गुरमैल भाई जी, जन्मदिन और विवाह की सालगिरह साथ-साथ? भई वाह! मज़ा आ गया. गुरमैल भाई जी, को दोहरी बधाई देते हुए हम आपको यह बताते चलते हैं, कि गुरमैल भाई जी की समझदारी से ही ये दोनों पर्व इकट्ठे मनाना संभव हो सका. उनकी ही सोची-समझी हुई योजना थी, कि जन्मदिन और शादी एक ही दिन हों, तो स्मरण करने में आसान भी रहता है और मनाने में भी आसान.
वैसे गुरमैल भाई जी के लिए मुश्किल कुछ भी नहीं है. उनकी एक और सोची-समझी हुई योजना थी, कि विवाह सादे तरीके से हो. वे बारात में गिने-चुने दस लोगों को ही ले गए थे, कोई भीड़-भड़क्का नहीं, कोई शोर-शराबा नहीं, कोई दान-दहेज नहीं, बस दो परिवारों का सुखद मिलन. अक्सर युवक सिर्फ़ ऐसा कहते हैं, गुरमैल भाई जी ने सिर्फ़ कहा ही नहीं करके भी दिखाया.
गुरमैल भाई जी के सुखी दाम्पत्य जीवन का मूलमंत्र है-
Just three keys to enjoy life
CTRL+ ALT+DLT
1. Control yourself
2. Look for Alternative solutions
3. Delete the situation which gives you tension.
सुखी दाम्पत्य जीवन के इस सूत्र को एक ओर जहां गुरमैल भाई जी ने अपनाया, वहीं उनकी जीवनसंगिनी कुलवंत जी ने भी अपनाया, तभी उनका दाम्पत्य जीवन सुखमय हो सका.
गुरमैल भाई जी जुनून, दृढ़ता, कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प की साकार प्रतिमा हैं. उनका मानना है-
”अपने दिल की सुनिए
अपने सपनों का पीछा कीजिए,
आप जो करते हैं,
उसके लिए जुनून, दृढ़ता, कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प का,
कोई विकल्प नहीं है.”
इसी मान्यता के कारण गुरमैल भाई जी का साहित्यिक जीवन संवर पाया. उनके जुनून की बात करें, तो वे नवभारत टाइम्स के साथ अन्य अनेक पत्र-पत्रिकाओं-समाचार पत्रों में कामेंट्स लिखते थे. लगभग 1000 कामेंट्स में से एक का उत्तर भी उनके पास नहीं आया, लेकिन जवाब की चिंता न करते हुए वे अपनी धुन में वे लिखते रहे. अंततः आज से तीन साल पूर्व उन्होंने एक दिन हमारे ब्लॉग ‘रसलीला’ पर एक कामेंट लिखा. उस कामेंट का जवाब मिला अय्र खूब मिला, तभी गुरमैल भाई जी के शब्दों में उन्होंने ब्लॉग ‘रसलीला’ पर स्थाई आसन जमा लिया. तब से अब तक वे वहीं डेरा जमाए हुए हैं.
अपने नायाब कामेंट्स को जारी रखने के साथ-साथ गुरमैल भाई जी का जुनून काम करता रहा और वे ”जय विजय” की वेबसाइट के हीरो ब्लॉगर बन गए. एक बार उन पर ”जय विजय” पत्रिका के मासिक अंक का पूरा एक पृष्ठ उनकी रचनाओं और उन पर लिखी गई रचनाओं को समर्पित किया गया. इसमें उनके बच्चों ने भी अपनी कलम का जादू दिखाया. कलम के इस जादूगर को 1915 ”जय विजय” पत्रिका के ”साहित्य सम्मान” से नवाज़ा गया. अपना ब्लॉग में अपने कामेंट्स के ज़रिए उन्होंने अपनी कविता, लेख, ब्लॉग आदि से पाठकों को सम्मोहित किया.
अभी उनके जीवन के एक महत्त्वपूर्ण अध्याय से आपको परिचित करवाना शेष रह गया है. कई वर्ष पहले उनका सपना था अपनी आत्मकथा को लिखने का, अब उन्होंने यह काम भी शुरु कर दिया. ‘मेरी कहानी’ नाम से उनकी आत्मकथा के पूरे 201 एपीसोड बन गए. हर एपीसोड एक नायाब आलेख बन गया. उनकी आत्मकथा की 9 ई.बुक्स भी बनीं. उन पर लिखे गए ब्लॉग्स की 2 ई.बुक्स को मिलाकर उनकी कुल 11 ई.बुक्स बनी हैं. हमने किसी भी लेखक-ब्लॉगर पर बनी इतनी ई.बुक्स कभी नहीं देखीं. इन ई.बुक्स को आप शायद पढ़ भी चुके होंगे.
गुरमैल भाई जी के भोलेपन की चर्चा के बिना यह ब्लॉग अधूरा ही रहेगा. एक बार उनको कामेंट लिखने में दिक्कत आ रही थी. बार-बार कामेंट लिखते, लेकिन कामेंट नहीं जा पाता और हर बार उनकी मेहनत बेकार जाती. उन्होंने हमसे ज़िक्र किया. हमने उन्हें कामेंट अलग से लिखकर कॉपी-पेस्ट के ज़रिए भेजने का परामर्श दिया. भोलेपन से हमसे बोले- ”कॉपी-पेस्ट करना तो मुझे आता ही कोई नहीं.” हमने फेसबुक पर चैटिंग करते हुए उनको तरीका सिखाया, जो उन्होंने फटाफट सीख लिया. फिर वे सभी काम ऐसे ही करते रहे और कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते गए. यह बात तीन साल पुरानी है.
अभी हाल ही में वे अपनी आत्मकथा को सब तक पहुंचाना चाहते थे. हमने उनको फेसबुक पर सभी ई.बुक्स पोस्ट करने की राय दी. फिर उनका संदेश आया- ”ऐसा करना तो मुझे आता ही कोई नहीं.” हमने उनको विधि लिख दी. उन्होंने किया और उनको तुरंत दुनिया भर से बधाई-संदेश आने लग गए. फिर फेसबुक पर उनका भोला संदेश आया ”हुर्रे!!!!! भाई ,आप ने तो मुझे पूरी दुनिया में पहुंचा दिया. पंजाबी में एक गाना है- माँ, मैं ते कवि हो गया .मैं भी अब कह सकता हूँ- माँ मैं भी लेखक बन गया.!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!गुरमैल”. यह खुशी की इंतिहा थी और उनके अंदर का बच्चा बोल रहा था-
उम्र भले ही अधिक हो,
दिल जवान होना चाहिए.
प्रिय गुरमैल भाई जी के आत्मकथा के बारे में हमारी राय है- ”प्रिय गुरमैल भाई जी ने आत्मकथा इतनी गज़ब की लिखी है. जितनी सुंदर आत्मकथा हमने कभी नहीं पढ़ी.”
उनकी ई.बुक्स का लिंक हम एक बार लिखे देते हैं-
गुरमैल भमरा की 11 ई.बुक्स का लिंक
https://issuu.com/leelatewani/docs/guru_e.book-1
सच है-
”आगे बढ़ने की ललक हो जिसे,
वह पीछे मुड़कर देखता नहीं,
ऊंचे चढ़ने की ललक हो जिसे,
वह रुक सकता है नहीं कहीं.”
अभी उनका एक नया रूप दिखाना शेष है-
अपनी आत्मकथा लिखते हुए भी वे अनेक प्यारी-प्यारी रचनाएं लिखते रहे. इसके बाद दौर आया उनकी गहरी रचनाओं का, इनमें से एक-एक रचना नायाब है. ये रचनाएं आपको इस लिंक पर देखने को मिलेंगी-
https://jayvijay.co/author/gurmailbhamra/
इंग्लिश पब्ब, बिदेस, मेरा कहा मान लिया !, एक औरत मैं भी हूँ !, कर्मों का फल, शराब, अत्याचारों के घेरे में नारी, “मुफ्त में ऊपर का सफ़र” उनकी ऐसी ही गहराई और व्यंग्य लिए नायाब रचनाएं हैं.
लिखने को अभी बहुत कुछ है, पर फिलहाल गुरमैल भाई जी को जन्मदिन की 74वीं सालगिरह और विवाह की 50वीं सालगिरह की कोटिशः बधाइयां देते हुए उनके सुखमय उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए ब्लॉग को विराम देते हैं. गुरमैल भाई जी, कोटिशः बधाइयां व शुभकामनाएं.
पुनश्च-
आप तो जानते ही हैं, कि आज संविधान के निर्माता के रूप में विख्यात बाबा साहब अंबेडकर जी की 126वीं जयंती है. देश-विदेश में उनका जयंती समारोह ज़ोर-शोर से मनाया जा रहा है. बाबा साहब अंबेडकर जी पावन स्मृति को हमारी ओर से विनम्र श्रद्धांजलि. इस अवसर पर नागपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डिजिटल भुगतान को आसान बनाने को लेकर भीम-आधार प्लैटफॉर्म और भीम ऐप के लिए कैश बैक के अलावा ‘रेफरल बोनस’ योजना की शुरुआत करेंगे.
डॉ.बाबासाहेब ने कहा था कि ‘‘लोग और उनके धर्म सामाजिक नैतिकता के आधार पर सामाजिक मानकों के द्वारा परखे जाने चाहिए,अगर धर्म को लोगों के भले के लिए आवश्यक वस्तु मान लिया जायेगा तो, और किसी मानक का मतलब नहीं होगा’’ यानी लोगों का भला मात्र किसी धर्म मात्र के मानने से नहीं हो सकता सामाजिक नैतिकता ही समाज और देश का भला कर सकती है.