ग़ज़ल
ज़िंदा नहीं हूं मौत ने पर मारा नहीं अभी
हम थक गए हैं दर्द से दिल हारा नहीं अभी ।
ले गया तूफ़ान उड़ाकर दरख्त ए बहार मेंरा
पर सिर से दुआ ने हाथ उतारा नहीं अभी ।
हर मुश्किलों का सामना तेरे ही दम से था
तेरे आगे उस खुदा को पुकारा नहीं अभी ।
शैलाब गमे ए ज़िंदगी का हम पार करेंगे
ये बात और है मिलता किनारा नहीं अभी ।
मिल जाएंगे राहों में अपने से कुछ बेगाने
पर कोई आप के जैसा सहारा नहीं अभी ।
रग रग में लहू तेरा बहता है ज़िंदगी बन
‘जानिब’ तुम्हारा कर्ज़ उतारा नहीं अभी ।
— पावनी दीक्षित ‘जानिब’