कविता – जब तलक युग अर्थ-प्रधान रहेगा
जब तलक युग अर्थ-प्रधान रहेगा
आपसी सम्बन्धों में व्यवधान रहेगा
वक्त कितना भी हो जाए विकसित
तन पर भी नहीं पूरा परिधान रहेगा।
जब तलक..युग..अर्थ प्रधान रहेगा॥
उज्जड होगी तब व्यवहार की भाषा
मिलेगी न कभी मानव की परिभाषा
आशा भी मत करना कभी किसी से
मानवता का ही होता बलिदान रहेगा।
जब तलक..युग..अर्थ प्रधान रहेगा॥
अर्थ पिशाचों की होगी अपनी बोली
अंतर्मन विंधे जैसे बंदूक की गोली
बिगड़ जायेंगे व्याकरण सारे के सारे
हर पल-छिन ही बिकता ईमान रहेगा।
जब तलक..युग..अर्थ प्रधान रहेगा॥
ज्ञान उपदेश तक अज्ञानी ही भाखें
बचें न नीच करम से खुद भी माखें
झूठी प्रशंसा से ही संतृप्त हो मानव
अभिमान का ही होता भान रहेगा ।
जब तलक..युग..अर्थ प्रधान रहेगा॥
सच कहता हूँ औ’ सच ही लिखता हूँ
सच के खातिर नहीं कभी बिकता हूँ
मिले बहुत कम खरीद्दार यहाँ मितवा
जिस मंडी में झूठों का सम्मान रहेगा।
जब तलक..युग..अर्थ प्रधान रहेगा॥
सारी व्यथाएँ छलक जाती पलक पर
समझा धरोहर ही है इस फलक पर
अब आज किसे कौन समझा पायेगा
जब, खुद ही बुढापा अपमान सहेगा
जब तलक युग अर्थ – प्रधान रहेगा
आपसी सम्बन्धों में व्यवधान रहेगा।
जब तलक..युग..अर्थ प्रधान रहेगा॥
— स्नेही “श्याम”