रहने की आदत हो गयी है
मुझे अंगार में रहने की आदत हो गयी है
किसी के प्यार में रहने की आदत हो गयी है
फ़लक पर हूँ जमीं पर मैं उतर सकता नहीं हूँ
मुझे अख़बार में रहने की आदत हो गयी है
ज़रूरत पर बिका था मैं हक़ीक़त है मगर अब
उसी बाज़ार में रहने की आदत हो गयी है
हुआ है ख़ास जबसे वो ज़माने से कटा यूँ
उसे दो चार में रहने की आदत हो गयी है
उसे सम्बन्ध-नाते प्यार कारोबार ही लगते
जिसे व्यापार में रहने की आदत हो गयी है
:प्रवीण श्रीवास्तव ‘प्रसून’
फतेहपुर उ.प्र