गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल-1

बिछड़ के हम से भला तुम किधर को जाओगे
हमें यक़ीन है तुम एक दिन तो लौट आओगे

हरेक सितम सहा हंसकर, तेरा तोहफ़ा समझा
ये इनायतें अपनी ये करम कैसे भूल पाओगे।

जख्म नासूर बन भी जाएं तो रखेंगे ताज़ा इन्हें
जब आओगे लौटकर मरहम तुम्हीं लगाओगे

मैं हूं तन्हा और तेरी तन्हाईयों से वाकिफ हूं
हारकर दिल से अपने इक दिन मुझे बुलाओगे

छूकर गुजरेगा किसी दिन तुम्हें अहसासे-वफा
रोओगे हमारे रोने से मेरे लिए ही मुस्कुराओगे

खो दिया मैने उम्र भर का ‘जानिब’ चैनो-सुकूँ
जान पे बन आई है और कितना याद आओगे

पावनी दीक्षित ‘जानिब’

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर