गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

आशाओं के दीप जलाने का यह अवसर है,
अब तो प्रिय मुस्कान खिलाने का यह अवसर है।

वक्त़ रहा प्रतिकूल सदा ही, पर हो ना मायूस,
अब उजड़ा संसार बसाने का यह अवसर है।

व्देष, बैर, कटुता ने बांटा भाई-भाई को,
वैमनस्य-दीवार ढहाने का यह अवसर है।

लेकर हाथ चलें हाथों में, मिलें क़दम क़दम से,
चैन-अमन का गांव बसाने का यह अवसर है।

पीर, दर्द, ग़म और व्यथाओं का है यह आलम,
मानव-मन को आज सजाने का यह अवसर है।

महके मानवता का घरअब, अपनापन बिखरे,
नेह, प्रेम के भाव निभाने का यह अवसर है।

बहुत हो चुका तंद्रा तोड़ो, उठो ‘शरद’अब सारे,
अब हमको कुछ कर दिखलाने का यह अवसर है।

प्रो. शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]