हास्य व्यंग्य

माया महा ठगनी हम जानी

व्यंग्य साहित्य की एक विधा है जो उपहास, मजाक और ताने का मिलाजुला स्वरुप है। हिन्दी में हरिशंकर परसाई और श्रीलाल शुक्ल व्यंग्य  विधा के प्रमुख हस्ताक्षर हैं।  हर किसी पर इस अस्त्र का उपयोग नहीं किया जा सकता। इसे किसी के पक्ष में प्रयुक्त करना है तो किसी के विरुद्ध। व्यंग्य विचार से पैदा भी होता  है और अभिव्यक्ति से सामना कराता है।  व्यंग्य विषंगति, झूठ और पाखंड का भड़ाफोड़ कर सत्य का अपने ढंग से साक्षात् कराता है।   व्यंग्य फब्तियां कसती हैं जो हंसाती,गुदगुदाती और तिलमिलाती हैं।

आजादी के बाद व्यंग्य विधा खूब  फली फूली। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू पर व्यंग्य बाणों की बरसात संसद और उसके बाहर खूब देखी गई। नेहरू के रहन सहन ,कपडे और खाने पीने तक पर खूब ताने मारे गए। व्यंगकारों ने इंदिरा गाँधी को भी नहीं बख्शा। इंदिरा से नरेंद्र मोदी तक व्यंग्य ,उपहास और मजाक का लम्बा दौर चला। जुमलों ने भी ऊंचाइयों को छुआ।  गरीब के खाते में 15 लाख का जुमला खूब प्रचलित हुआ।  मजाक और परिहास के तीर भी इस पर चले। यह अलहदा है इसका शिकार भी सदा की तरह गरीब ही हुआ। इंदिरा गाँधी  के समय जो हिटलर की चाल चलेगा बहुत प्रचलित हुआ। इसको प्रचलित करने वाले आज सत्तासीन है और यह नारा उन पर भी सटीक बैठता है।

आज माया से किसे मोह नहीं है मगर माया भी बंटी हुई है। जब तक साथ है तब तक सभी माया के पुजारी है। सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी की तर्ज पर साथ छूटा तो माया का मोह भी त्यागना पड़ेगा। कबीर के शब्दों में माया महा ठगनी हम जानी।

लेकिन आज स्वस्थ आलोचना और व्यंग्य का स्थान फूहड़ता और व्यक्तिगत आरोपों ने ले लिया है। इसके साथ ही सहिष्णुता का बाजार  भी गर्म हो गया। सहिष्णुता को लेकर अवार्ड लौटने वाले नितांत एक पक्षीय हो गए। उन्होंने जैसे आँखों पर पट्टी बांध ली। कहने का मतलब है मीठा-मीठा गप-गप, कड़वा-कड़वा थू थू  । व्यंग्य भी पक्षपात का शिकार हो गया और व्यंगकार खेमे के शिकार हो गए।

बाल मुकुन्द ओझा

बाल मुकुन्द ओझा

लेखन की शुरूआत विधिवत रूप से 1969 से शुरू हुई। जब चूरू में विद्यालयी हस्तलिखित पत्रिका के सम्पादन की जिम्मेदारी सौंपी गई। इसी वर्षे समाचार उद्घोषक भी नियुक्त किया गया। असल में यही वह समय था जब लेखन के प्रति रूचि जागृत हुई। समाचार पत्र पढ़ने का कार्य भी प्रारम्भ हुआ। 12वीं कक्षा में आते.आते पत्रकारिता का भूत सिर पर सवार हुआ। बीकानेर से प्रकाशित साप्ताहिक सप्ताहान्तए जोधपुर से प्रकाशित साप्ताहिक कंट्रोलरए देहरादून से प्रकाशित दैनिक जनता एक्सप्रेस में समाचार भेजने शुरू किये। कालेज में आते ही राजस्थान पत्रिका ने 1972 में चूरू में अपना संवाददाता नियुक्त किया। इसी दौरान सारिका से लेकर कादम्बिनी सरिता मुक्ता अरूण आदि पत्र पत्रिकाओं में लेख कहानियां और कविताएँ प्रकाशित हुई। 1979 आते.आते राजस्थान सरकार में सहायक जन सम्पर्क अधिकारी के पद पर नियुक्ति मिली। इस दौरान बीकानेरए कोटाचूरू सीकर झुंझुनू धौलपुर झालावाड़ होते हुए राजधानी जयपुर में सयुंक्त निदेशक के पद से फरवरी 2013 में राजकीय सेवाओं से निवृत्ति मिली। इस अवधि में हजारों समाचार लेख आदि लिखे जो विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए । लेखक की एक पुस्तक लोकतंत्र का पोस्टमार्टम 2017 में प्रकाशित हुई है। एक लघुकथा संग्रह भी साहित्यिक पूंजी में शामिल हुई जो हाल फिलहाल तक अप्रकाशित है। हांलाकि ये लघु कथाएँ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में छप चुकी हैं। D -32, माडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर मो.- 9414441218