इंसानियत — एक धर्म ( भाग –एकादश )
” हाँ रमेश ! उस इंसानियत के पुजारी का नाम असलम ही है । ” राखी हैरान हो रहे रमेश के चेहरे को मासूमियत से देखते हुए बोली ।
” यानी मुसलमान है वह सिपाही ? ” रमेश के चेहरे पर अभी भी अविश्वास के भाव थे ।
राखी के अधरों पर मुस्कान और गहरी हो गयी ” तुम्हारी कमी यही है रमेश ! तुम हर इंसान को धर्म का चश्मा लगाकर ही देखते हो और उसीके अनुसार उसके बारे में अपनी धारणा बना लेते हो । “
पीड़ा के भाव अब रमेश के चेहरे पर साफ झलक रहा था । साफ दिख रहा था कि वह अपनी प्रिय पत्नी से इस समय बेकार की बहस नहीं करना चाहता था लेकिन अपने धर्म को लेकर अपने सिद्धांतों की बलि भी तो नहीं चढ़ा सकता था । बनावटी मुस्कुराहट चेहरे पर लाते हुए रमेश ने राखी को समझाना चाहा ” तुम रहने दो राखी ! ये दुनियादारी और धर्म कर्म की बातें तुम्हारी समझ में न आएंगी ……..”
अभी रमेश अपनी बात पुरी कर भी नहीं पाया था कि राखी बीच में ही बोल पड़ी ” रमेश ! तुम मुझे क्या समझाना चाहते हो ? यही कि सभी मुस्लिम देशद्रोही गद्दार व अपराधी मानसिकता के होते हैं ? “
” हाँ ! मैं बिल्कुल यही समझाना चाहता हूं कि सभी मुस्लिम निहायत ही घटिया मानसिकता वाले होते हैं । गद्दारी और गैर मुस्लिमों का खून बहाना ही इनका धर्म होता है । जेहाद ही इनका सबसे बड़ा धार्मिक कृत्य है और इसीलिए पूरी दुनिया में आतंकवाद के जनक यही लोग हैं । अगर अब भी यकिन नहीं आया तो यह बताओ दुनिया में जितनी भी आतंकवादी घटनाएं हुई हैं उनमें क्या इस्लाम वालों के अलावा भी किसी का हाथ रहा है ? ” कहते हुए रमेश का दुख अब आवेश में परिवर्तित हो चुका था ।
लेकिन उसके आवेश से रत्तीभर भी विचलित न होती हुई राखी ने कहना शुरू किया ” मैं जानती हूं रमेश ! तुम क्या कहना चाहते हो ! मैं यह भी जानती हूं कि हमारे देश में या पूरी दुनिया में होनेवाले आतंकवादी घटनाओं के पीछे मुसलमानों का ही हाथ होना साबित होता रहा है । संसद हमला हो या अक्षरधाम मंदिर पर हमला या फिर मुम्बई हमला सभी हमलों के पीछे मुसलमानों का ही हाथ रहा है लेकिन क्या आपने अशफाकउल्ला खान का नाम सुना है ? वीर अब्दुल हमीद के बारे में जानते हैं आप ? चलो ठीक है इन्हें न भी जानते हों लेकिन हम सभी के आदर्श और प्रिय मिसाइल मैन के नाम से मशहूर डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम को तो आप अवश्य जानते होंगे । क्या वो मुसलमान नहीं थे ? क्या इन लोगों की देशभक्ति पर आपको कोई शक रहा है ? और रही बात गद्दारी की तो इतिहास गवाह है गद्दार का कोई भी न धर्म रहा है न मजहब ! राजा पुरु से गद्दारी करके सिकंदर से जा मिलने वाला राजा अम्भिक किस धर्म से ताल्लुक रखता था ? गद्दारों के शिरोमणि और जिसकी मिसाल हमेशा पेश की जाती है वो जयचंद किस धर्म का था ? चलो थोड़ी धार्मिक बातें भी हो जाएं । रावण से युद्ध करने वाले श्री राम की सहायता करनेवाला विभीषण क्या आपकी नजर में देशभक्त था ? आप अपने विचारों के समर्थन के साथ ही इन बातों का ध्यान क्यों नहीं रख पाते ? क्या महाभारत किसी मुसलमान की वजह से हुआ था ? ……”
कहते कहते राखी का चेहरा भी लाल सुर्ख हो गया था । उसकी अवस्था देखकर अब रमेश की कुछ भी बहस करने की हिम्मत नहीं हो रही थी ।
उसका मस्तिष्क सरगोशियां करते हुए उसे ही धिक्कारने लगा ‘ धिक्कार है तुम पर रमेश ! एक तो तुमने अपने पति धर्म का पालन नहीं किया । भूल गए अग्नि के सामने फेरे लेते हुए तुमने उसकी उम्र भर सभी तरह से रक्षा करने का वचन दिया था लेकिन परिस्थितिवश तुम असफल रहे । उसकी रत्ती भर भी शिकायत राखी ने नहीं की उल्टे रात भर जागकर तुम्हारी सेवा करती रही । तुम तो यहां घायल होकर सिर्फ जिस्मानी दर्द से ही जूझ रहे थे जबकि वह तो किस मानसिक अंधड़ के बीच से अपनी राह निकाल रही थी तुम्हें इसका जरा भी अहसास नहीं है ? और अब अपना मर्दपना उस पर थोपना चाहते हो ? तुमसे बड़ा अहसान फरामोश कौन होगा ? और बात करते हो दूसरे कौम की । जरा सोचो समझो और फिर फैसला करो रमेश ….. राखी आखिर तुम्हारी पत्नी है । क्या उसकी अपनी कोई सोच कोई मर्जी नहीं हो सकती ? और उसके विचारों का सम्मान तुम नहीं करोगे तो क्या कोई और करेगा ? ‘ अचानक रमेश को अपना सिर घुमता सा लगा और अपने हाथ उठाकर राखी को कुछ कहने का प्रयास करता रमेश अपनी आंखें बंद कर बेड पर ही शांत हो गया । उसकी सांसें तेज तेज चलने लगी थी । उसकी हालत देखकर भयभीत राखी चीखती हुई डॉक्टर के कमरे की तरफ भागी । कक्ष में मौजूद जूनियर डॉक्टरों और नर्सों ने बेड के चारों तरफ घेरा डाल दिया और उसका तरह तरह से परीक्षण करने लगे । डॉक्टर मुखर्जी और उनके साथ दरोगा पांडेय जी जब तक सघन चिकित्सा कक्ष में पहुंचते डॉक्टरों ने अपनी जांच पूरी कर ली थी । डॉक्टरों की लिखी जांच रिपोर्ट पर नजर डालते हुए डॉक्टर मुखर्जी ने बताया ” चिंता की कोई बात नहीं है । हार्ट बीट असामान्य रूप से बढ़ गयी है इसलिए ऐसा हुआ होगा । ” कहते हुए उन्होंने जूनियर डॉक्टर को कुछ इशारा किया और कहना जारी रखा ” दवाई मैंने बता दिया है । अभी कुछ ही देर में सामान्य हो जाएंगे लेकिन अब हम उनसे किसीको भी मिलने की इजाजत नहीं दे सकते । माफ कीजियेगा । “
कहने के साथ ही डॉक्टर मुखर्जी तेज कदमों से अपने कक्ष की तरफ बढ़ते चले गए । दरोगा पांडेयजी भी धीमे कदमों से चलते हुए कक्ष से बाहर निकल आये । आज रमेश का बयान दर्ज करने का उनका प्रयास फिर एक बार विफल हो गया था । उन्होंने ध्यान से राखी की तरफ देखा । वह भाव हीन चेहरा लिए धीमे कदमों से कक्ष से बाहर की तरफ जा रही थी । कुछ ही देर बाद वह फिर से वहीं बैठी हुई थी जहां बैठकर उसने रात बिताई थी । पांडेयजी उसे देखकर उसकी अवस्था का अनुमान लगाते हुए रमेश और राखी से कुछ भी पुछने का विचार त्याग कर अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ गए ।
कुर्सी पर बैठी हुई राखी पूरी तरह से अपने आपमें ही खोई हुई सी लग रही थी और उसका चेहरा भावशून्य दिख रहा था । लेकिन यह किसे पता था यह तूफान के पहले की खामोशी थी । अपने पति रमेश की तरफ से भी वह लापरवाह ही नजर आयी । बाहर से वह भले ही शांत नजर आ रही हो लेकिन उसके अंतर्मन में विचारों के अंधड़ चल रहे थे । और कुछ देर बाद उसने दीवार पर लगी घड़ी पर नजर दौड़ाई । घड़ी में सुबह के दस बज रहे थे । अचानक चेहरे पर दृढ़ निश्चय लिए राखी उठी और तेज कदमों से अस्पताल के बाहर की तरफ निकल गयी ।